आखिर ऐसा क्या हुआ की देवव्रत का नाम बदल कर भीष्म रख दिया गया?

महाभारत के युद्ध में भीष्म जो की पांडवों और कौरवों दोनों के पितामह थे | परन्तु क्या आप जानते हैं की वो कौरवों की तरफ से क्यों लडे जबकि ये उन्हें भी ज्ञात था की पांडव सही थे और कौरव गलत | इसके पीछे के रहस्य से आज हम पर्दा उठाने जा रहे हैं |

बात उस समय की है जब महाराजा शांतनु का विवाह देवी गंगा से हुआ था | परन्तु गंगा अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ सकती थी और इसी वजह से देवी गंगा महाराज शांतनु के साथ उनके राजभवन में नहीं रहीं | ये सर्वविदित है की देवी गंगा को नदी के रूप में रह कर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करना था | इस लिए गंगा महाराज शांतनु के साथ नहीं रह पायी | इस आघात को महाराज शांतनु बर्दाश्त नहीं कर पाए और धीरे धीरे सांसारिक मोह माया से उनका मन उचटने लगा |

देवव्रत एक परिचय

ऐसे में एक दिन जब वो गंगा के तट पर बैठे थे तभी गंगा स्त्री रूप में प्रकट हुई और एक नवजात शिशु को उनकी गोद में रखकर वहां से चली गयी | महाराज शांतनु ने उस बालक को जो की उनका पुत्र था को देवव्रत नाम दिया | ये वोही बालक था जो आगे चल कर भीष्म के  नाम भी प्रचलित हुए |

देवव्रत और सत्यवती

इसी प्रकार दिन बितते रहे और बालक देवव्रत भी धीरे धीरे बड़े होने लगे | बालक देवव्रत जैसे जैसे बड़े हो रहे थे वैसे वैसे उस ओजस्वी बालक की विलक्षण प्रतिभा सामने आने शुरू हो गयी | बालक बड़े ही अद्भुत शक्तियों का मालिक था | एक दिन महाराज शांतनु को एक निषाद कन्या दिखी जिसका नाम सत्यवती था |

महाराज शांतनु उसे देखते ही उसके ऊपर मोहित हो गए | महाराज शांतनु ने निश्चय कर लिया था की उससे विवाह कर उसे ही अपनी अर्धांगिनी बनायेंगे | परन्तु जब सत्यवती को ये पता चला तो उसने महाराज शांतनु से विवाह करने से मना कर दिया | इसके बाद महाराज उदास उदास से रहने लगे |

भीष्म बनने के पीछे का कारण

जब देवव्रत को ये बात पता चली तो वो सत्यवती से मिलने पहुचे | वहां पहुचकर उन्होंने जब सत्यवती के सामने महाराज शांतनु से विवाह का प्रस्ताव रखा तो सत्यवती ने ये कह कर मना कर दिया की वो देवव्रत से विवाह को तैयार है परन्तु महाराज शांतनु से विवाह उन्हें कतई मंजूर नहीं |

क्यूंकि अगर महाराज और सत्यवती की संतान हुई भी तो उसे दास बनकर रहना पड़ेगा क्योंकि निति के अनुसार प्रथम पुत्र ही सत्ता का अधिकारी होता है | इसपर देवव्रत ने प्रतिज्ञा ली की वो कभी भी शासक नहीं बनेंगे और आजीवन सत्तारूढ़ व्यक्ति के लिया कार्य करेंगे और जो भी राजा होगा उसकी आज्ञा का अक्षरश पालन करेंगे |

इसपर सत्यवती ने कहा की तुम भले ही सत्ता के लिए दावेदारी न रखो परन्तु अगर तुम्हारे पुत्र या पौत्र आगे ऐसा करते हैं तो | सत्यवती की बातो से आहात होकर देवव्रत ने ऐसी भीषण प्रतिज्ञा ली की वो आजीवन विवाह नहीं करेंगे | और इसी वजह से देवव्रत का नाम भीष्म पड़ा | अपने इसी वचन की वजह से भीष्म को सारी सच्चाई जानते हुए भी अधर्मी कौरवों की तरफ से लड़ना पड़ा |

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