भगवान् विष्णु ने ऐसा क्या अनर्थ किया था की नारद मुनि ने उनको श्राप दे डाला

नारद मुनि के बारे में सभी जानते हैं लेकिन क्या आप को पता है की सदैव ब्रह्मचारी रहने का प्रण लेने वाले नारद भी एक बार काम भावना के वशीभूत होकर विवाह करने को उतावले हो गए थे| एक बार की बात है नारद मुनि की अपने ज्ञान पर अभिमान हो गया| भगवान् विष्णु ने अपने परम भक्त की इस स्थिति से अत्यधिक दुखी हुए| और निर्णय किया की नारद का अभिमान भंग करने के लिए कुछ न कुछ करना पड़ेगा|

भगवान् विष्णु ने एक माया नगरी का निर्माण किया| देवी लक्ष्मी ने उस माया नगरी की राजकुमारी का रूप बनाया| राजकुमारी अद्वितीय सुंदरी थी उनकी सुन्दर छवि देख कर सभी लोग मंत्रमुग्ध हो गए| राजकुमारी एक दिन बाग़ में भ्रमण कर रहीं थी तभी नारद मुनि की नज़र उन पर पड़ी| नारद मुनि ने अपने समस्त जीवनकाल में इतनी सुन्दर स्त्री नहीं देखि थी| राजकुमारी की सुन्दरता देख कर नारद मुनि ब्रह्मचारी होने के बावजूद खुद को रोक नहीं पाए| और दिन रात उन्हें पाने की जुगत लगाने लग गए|

भगवान् विष्णु ने देखा की नारद मुनि पूर्ण रूप से देवी लक्ष्मी जिन्होंने राजकुमारी का रूप धरा था पर मोहित हो गए थे| अब समय आ गया था अगली चाल चलने का राजकुमारी के स्वयंवर की घोषणा करने का उत्तम समय आ गया था| राजकुमारी के स्वयंवर के बारे में जब नारद मुनि को पता चला तो वो भगवान् विष्णु के पास पहुंचे और भगवान् से कहा की प्रभु अगर मैंने सच्चे मन से आपको अपना आराध्य माना है तो मुझे हरी रूप प्रदान करे| भगवान् विष्णु ने कहा की नारद तुम्हारी भक्ति पर संदेह करना स्वयं पर संदेह करने जैसा है अतः मैं तुम्हे हरी रूप प्रदान करता हूँ|

इसपर नारद फूले नहीं समाये और स्वयंवर में जा कर राजाओं के साथ बैठ गए| उन्हें पूरा विश्वास था की राजकुमारी उनके गले में ही वरमाला डालेंगी| परन्तु राजकुमारी उनके पास रुकी भी नहीं और आगे दिन हिन् भाव में बैठे भगवान् विष्णु के गले में वरमाला डाल दी| इससे नारद बहुत आहात हुए और दुखी भाव से वापस चल पड़े उन्हें समझ नहीं आ रहा था की आखिर ऐसा क्या हुआ की राजकुमारी ने ब्रम्हाण्ड के सबसे रूपवान पुरुष को नकार कर एक दिन हिन् से दिखने वाले युवक को क्यूँ चुना| उनका अभिमान चूर चूर हो गया था रास्ते में जब वो एक तालाब के किनारे पहुंचे तो उन्हें पानी में अपना प्रतिबिम्ब दिखा| नारद ये देख कर अचंभित रह गए की वो भगवान् विष्णु नहीं बल्कि वानर रूप में थे| तब उन्हें समझ आया की हरी वानर को भी कहते हैं और भगवान् विष्णु ने उनके साथ मज़ाक किया था|

इससे आहत हो कर उन्होंने भगवान् विष्णु को श्राप दिया की जैसे मैं स्त्री वियोग में जल रहा हूँ वैसे ही आप भी स्त्री वियोग की अग्नि में जलोगे| और आपने जिस वानर रूप देकर मुझे लज्जित किया है उसकी सहायता से ही आप अपनी पत्नी वापस ला पाओगे|

नारद जब वापस बैकुंठधाम पहुंचे तो भगवान् विष्णु और देवी लक्ष्मी राजकुमारी और गरीब पुरुष के रूप में बैठे थे| ये देखते ही नारद मुनि सारी बात समझ गए और बहुत ही लज्जित हुए| नारद मुनि के श्राप के चलते ही प्रभु राम का माता सीता से वियोग हुआ था और हनुमान की सहायता से ही दोनों का मिलन हुआ था|

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *