Skip to content

देवी सीता की पायलों को देखकर क्यों रोने लगे श्री राम

    श्री राम राजा दशरथ के पुत्र थे। उनका विवाह देवी सीता से हुआ। देवी सीता राजा जनक की पुत्री थी। इस बात से तो हम सब अवगत हैं कि श्री राम तथा देवी सीता रामायण के प्रमुख पात्र हैं। परन्तु उनके जीवन से जुड़े कुछ प्रसंग ऐसे हैं जिनके बारे में कुछ ही लोग जानते हैं। आइए जानते हैं इन में से एक प्रसंग के बारे में-

    श्री राम तथा देवी सीता के विवाह के पश्चात् उन्हें लक्ष्मण जी सहित वनवास जाना पड़ा। वनवास जाने के बाद देवी सीता का रावण द्वारा हरण हो गया। इस प्रसंग का उल्लेख रामायण के क‌िष्क‌िंधा कांड में किया गया है।

    जब देवी सीता का हरण हुआ। तब देवी सीता ने श्री राम को मार्ग दिखाने के लिए अपने आभूषण साड़ी के पल्लू में बांधकर फेंक दिए। देवी सीता द्वारा फेंके गए आभूषण वानर राजा सुग्रीव को मिले। सुग्रीव ने वह आभूषण संभाल कर अपने पास रख लिए।

    भगवान राम तथा लक्ष्मण जी देवी सीता को ढूंढते हुए मलय पर्वत पर पहुंचे। मलय पर्वत पर वानर राजा सुग्रीव अपने भाई बालि के डर से अपने मंत्रियों तथा शुभचिंतकों के साथ विराजमान थे। श्री राम के वहां पहुँचने पर सुग्रीव ने वह आभूषण उन्हें सौंप दिए।

    साड़ी के पल्लू से बंधे आभूषणों को देखकर श्री राम लक्ष्मण जी से पूछते हैं कि क्या वह देवी सीता के बाजूबंद, कर्णफूल, हार और पायलों को पहचानते हैं? श्री राम का यह प्रश्न सुनकर लक्ष्मण जी की आँखों में पानी आ जाता है और वह कहते हैं-

    नाहं जानाम‌ि केयूरे, नाहं जानाम‌ि कुण्डले। नूपुरे त्वभ‌िजानाम‌ि न‌ित्यं पादाभ‌िवन्दनात्।।

    लक्ष्मण कहते हैं कि हे प्रभु! मैं  ना तो देवी सीता के बाजूबंद को पहचानता हूँ और ना ही उनके कुंडल को पहचानता हूँ। परन्तु मैं उनके पैरों में डाली हुई पायल को अवश्य पहचानता हूँ। क्योंकि मैं उनके पैरों की वंदना करता हूँ इसलिए मेरी नजर हमेशा उनके चरणों में ही रहती है और इसीलिए ही मैं केवल उनके चरणों में रहने वाली पायल को ही पहचानता हूँ।

    लक्ष्मण जी की इन बातों को सुनकर श्री राम की आँखों से पानी बहने लगता है और वह लक्ष्मण जी को गले लगाकर रोने लग जाते हैं।

    रामायण में भाभी को माता का स्थान दिया गया है और यह भी बताया गया है कि देवर भाभी के पुत्र के समान होता है। लक्ष्मण जी तथा देवी सीता भी इसी आदर्श का पालन करते हैं और जब भी श्री राम ने देवी सीता के विरुद्ध कोई आदेश दिया तब लक्ष्मण जी ने एक पुत्र के समान अपनी माता समान भाभी का पक्ष लेते हुए श्री राम का प्रतिवाद किया।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *