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कब कब बने हनुमान जी श्री राम के संकट मोचक

    हिन्दू धर्म में हनुमान जी को अनेक नामों से जाना जाता है। जैसे बजरंगबली, महावीर, केसरी नंदन, राम भक्त और संकट मोचन। हनुमान जी को यह नाम उनके गुणों और कर्मों के कारण प्राप्त हुए हैं। हनुमान जी जैसा कोई वीर नही है। इसलिए इन्हें महावीर कहा जाता है। हनुमान जी श्री राम के सबसे बड़े भक्त हैं। इसलिए इन्हें राम भक्त कहकर भी पुकारा जाता है। केसरी के पुत्र होने के कारण इन्हें केसरी नंदन कहा जाता है।

    हनुमान जी को संकट मोचन कहने का कारण यह है कि यह अपने भक्तों को हर संकट से बचाते हैं। हनुमान चालीसा में कहा भी गया है कि

    ‘को नहिं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो’

    हनुमान जी न केवल अपने भक्तों को संकट से बचाते हैं बल्कि उन्होंने अपने प्रभु श्री राम को भी कई बार संकट से बचाया है। इसलिए श्री राम ने अपने प्रिय भक्त को संकट मोचन नाम दिया है और सृष्टि के अंत तक पृथ्वी पर रह कर अपने भक्तों को संकट से निकालने का आशीर्वाद दिया है।

    आइए जानते हैं कि हनुमान जी ने कब कब और कैसे श्री राम को संकट से निकाला है।

    जब सीता जी का हरण हुआ। श्री राम और लक्ष्मण सीता जी को ढूंढने के लिए भटक रहे थे। इसी दौरान उनकी मुलाकात हनुमान जी से हुई। हनुमान जी ने श्री राम को सुग्रीव से मिलाया। सुग्रीव की वानर सेना की सहायता से ही वे रावण को युद्ध में पराजित करने में सफल हुए।

    जब सीता जी का कहीं पता नही चल रहा था तो श्री राम बहुत निराश हो गए थे। ऐसे में हनुमान जी ही थे। जिन्होंने विशाल समुद्र पार कर के सीता जी का पता लगाया था और श्री राम को बताया था कि सीता जी रावण की अशोक वाटिका में उनके आने का इंतजार कर रही हैं।

    जब लक्ष्मण जी शक्ति बाण से मूर्च्छित हो गए थे तो उनकी यह स्थिति देखकर श्री राम बहुत चिंतित थे। ऐसे समय में सुषेण नाम के वैद्य के कहने पर हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आए। इस बूटी के प्रयोग से लक्ष्मण जी के प्राण बचे।

    जब नाग पाश में राम तथा लक्ष्मण जी बंध गये थे तो हनुमान जी ने ही गरुड़ को बुलाकर उनकी सहायता की थी।

    अहिरावण ने बलि के उद्देश्य से नींद में राम लक्ष्मण का हरण कर लिया था। जब हनुमान जी को यह बात ज्ञात हुई तो वह अहिरावण की खोज में चल पड़े।

    अहिरावण श्री राम और लक्ष्मण जी की बलि देने ही वाला था कि इतने में हनुमान जी वहां पहुँच गए और उन्होंने अहिरावण का अंत करके राम लक्ष्मण के प्राण बचाए।

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