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क्या आप जानते है ‘कन्याकुमारी’ जगह का नाम कैसे पड़ा? जानिए इसके पीछे का रहस्य

    कन्याकुमारी भारत के तमिलनाडु में दक्षिण तट पर स्थित एक शहर है| एक ऐसा स्थान जहाँ पर हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर मिलते हैं| कन्याकुमारी कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है| कन्याकुमारी यात्रियों के भ्रमण करने के लिए बेहद अच्छा स्थान है| यहाँ पर दूर-दूर तक फैले समुद्र की विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा देखने वाला होता है| समुद्र तट पर रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देती है|

    ‘कन्याकुमारी’ भारत की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है| परन्तु क्या आप को ज्ञात हैं कि इस जगह का नाम कन्याकुमारी क्यों पड़ा? तो आइए जानते है इस जगह के नाम का रहस्य|

    शिवपुराण की एक पौराणिक कथा के अनुसार बानासुरन नामक एक राक्षस था, जिसका भय सभी देवताओं को था क्योंकि उसके कुकर्मों से सभी पीड़ित थे और सभी देवता इससे मुक्ति पाना चाहते थे| परन्तु उस दैत्य को भगवान शिव से यह वरदान मिला हुआ था कि उसकी मृत्यु एक ‘कुंवारी कन्या’ के हाथों ही होगी वरना वह अमर हो जाएगा|

    उस समय के राजा भरत जो की भारत पर शासन करते थे, उनके आठ पुत्र और एक पुत्री थी जिसका नाम कुमारी था जिसे शक्ति देवी का अवतार माना जाता था| भरत ने अपनी जायदाद और सम्पूर्ण भूमि को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया| उस साम्राज्य में से दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला| दक्षिण भारत के इस हिस्से को कुमारी ने प्रभावशाली रूप से संभाला और राज्य की उन्नत्ति के हर दम कोशिश करती रही|

    ऐसी मान्यता है की कुमारी को भगवान शिव से प्रेम था| उनकी चाह थी कि वह शिव से विवाह करें| शिव को अपना बनाने के लिए और उनसे विवाह करने हेतु कुमारी ने शिव की घोर तपस्या की, उसकी कठोर तपस्या से शिव प्रसन्न हो उठे और विवाह का प्रस्ताव स्वीकार किया| अब विवाह की तैयारियां शुरू हो गयी थी| कुमारी ने अपना श्रृंगार भी कर लिए था और दूसरी ओर शिव भी बारात लेकर कुमारी से विवाह करने जा रहे थे|

    परन्तु अचानक से नारद मुनि को ज्ञात हुआ की कुमारी कोई साधारण कन्या नहीं बल्कि इस कन्या का जन्म बानासुरन का वध करने  हुआ है| जब सबको इस बात का आभास हुआ तो शिव जी की बारात वापिस कैलाश लौट गयी और इस कारण सृष्टि के कल्याण के लिए शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया|

    इस सब के बीच बानासुरन ने कुमारी की सुंदरता से मोहित होकर कुमारी के आगे विवाह का प्रस्ताव रखा| तो कुमारी ने कहा की विवाह का फैसला युद्ध के दौरान होगा अगर वह असुर युद्ध में कुमारी को हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी| दोनों के बीच युद्ध हुआ और बानासुरन की मृत्यु कुमारी के हाथों हुई|

    बानासुरन की मृत्यु के पश्चात स्वर्गलोक में हर्ष उल्लास का माहौल बन गया, क्योंकि उन्हें  असुर से मुक्ति मिल गई| उसके बाद कुमारी ने शिव से विवाह करने की इच्छा को त्याग दिया और वह आजीवन कुंवारी ही रह गई| तो इस कथा के माध्यम से भारत के इस दक्षिणी छोर का नाम कन्याकुमारी पड़ा|

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