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जो भी सदस्य आरएसएस शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह “स्वयंसेवक” कहलाता हैं

    शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर एक घंटे की लगती है। शाखा में व्यायाम, खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है। सामान्यतः शाखा प्रतिदिन एक घंटे की ही लगती है। शाखाएँ निम्न प्रकार की होती हैं:

    • प्रभात शाखा: सुबह लगने वाली शाखा को “प्रभात शाखा” कहते है।
    • सायं शाखा: शाम को लगने वाली शाखा को “सायं शाखा” कहते है।
    • रात्रि शाखा: रात्रि को लगने वाली शाखा को “रात्रि शाखा” कहते है।
    • मिलन: सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को “मिलन” कहते है।
    • संघ-मण्डली: महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को “संघ-मण्डली” कहते है।

    पूरे भारत में अनुमानित रूप से ५०,००० शाखा लगती हैं। विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता। कहीं पर “भारतीय स्वयंसेवक संघ” तो कहीं “हिन्दू स्वयंसेवक संघ” के माध्यम से चलता है।
    शाखा में “कार्यवाह” का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए “मुख्य शिक्षक” का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है।
    जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह “स्वयंसेवक” कहलाता हैं।

    5 thoughts on “जो भी सदस्य आरएसएस शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह “स्वयंसेवक” कहलाता हैं”

    1. अपनी देश की जनता जनार्दन थी जनहित के लिए मैचाहता हूं मैं इस संघ समुदाय में कार्य तू कर अपने गुरु जो गुरुजनों से प्रेरणा लेकर

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