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पांडू श्राप के कारण पिता नहीं बन सकते थे, तो आख़िर पांडव किनके पुत्र थे? यह जान कर आप हैरान हो जाओगे

    महाभारत की कथा के पांडवों और कौरवों के बारे में अनेक ऐसी बातें है जो आज भी लोगों के लिए पहेली बनी हुई है| आइये जानते हैं ऐसे ही एक वाकये के बारे में जैसा की सभी जानते है की पांडव कुंती और माद्री के पुत्र थे परन्तु उनके पिता महाराज पांडू नहीं थे| जी हाँ यह एक ऐसा सत्य है जो सभी ने कभी न कभी जरूर सुना होगा परन्तु इसके पीछे का कारण शायद कुछ ही लोगों को पता होगा|

    एक बार की बात है जब महाराज पांडू वन में शिकार करने गए थे तो उन्होंने एक मृग जोड़े का पीछा करते हुए उनका शिकार कर लिया| परन्तु उन्हें पता नहीं था की वो मृग का जोड़ा वास्तव में एक ऋषि किंडम और उनकी पत्नी थे जैसे ही उन्हें तीर लगा वो अपने वास्तविक रूप में आ गए और महाराज पांडू को श्राप दिया की जैसे तुमने हमें काम क्रीडा करते वक़्त मारा है वैसे ही अगर तुम किसी के साथ भी काम क्रीडा करोगे तो तत्काल तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी|

    इस श्राप से आहत होकर पांडू ने सारा राजकाज विदुर और पितामह भीष्म को सौंप कर वन में रहने का निर्णय किया| उनके साथ देवी कुंती और देवी माद्री भी सारे सुख और ऐश्वर्य का त्याग कर के वन की ओर चल पड़ी| एक दिन महाराज पांडू बड़े ही उदास बैठे थे| कुंती ने उनसे उनकी हताशा का कारण पूछा तो उन्होंने सारी बात बताते हुए कहा की मेरे बाद पांडू वंश का नामो निशान मिट जायेगा| तब कुंती ने उन्हें अपने वरदान के बारे में बताया की वो किसी भी देवता का आवाहन कर उनसे पुत्र प्राप्त कर सकती है|

    ये सुनकर पांडू आश्चर्य और प्रसन्नता से भर गए और उन्होंने कुंती को धर्मराज का आवाहन करने को कहा| उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए कुंती ने वैसा ही किया और उनके आशीर्वाद से उन्हें एक तेजस्वी बालक की प्राप्ति हुई जिसका नाम युधिष्ठिर रखा| उसके बाद पवनदेव के आशीर्वाद से भीम और देवराज इंद्र के आशीर्वाद से अर्जुन नामक पुत्र हुए|

    उनके पुत्रों को देख कर देवी माद्री की ममता भी जागृत हो उठी और उन्होंने भी देवी कुंती से एक बार उस दिव्य मंत्र के बारे में बताने को कहा| देवी कुंती को माद्री से बड़ा प्रेम था और वो उन्हें अपनी छोटी बहन मानती थी इसलिए उन्होंने उन्हें वो दिव्य मन्त्र बता दिया| देवी माद्री ने देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों का आवाहन किया और उसके फलस्वरूप नकुल और सहदेव की माता बनने का गौरव प्राप्त किया|

    एक बार वसंत ऋतू में पांडू देवी माद्री की सुन्दरता देख कर आतुर हो उठे और देवी माद्री के लाख मना करने पर भी नहीं माने इसके फलस्वरूप तत्काल उनकी मृत्यु हो गयी और इससे आहत होकर देवी माद्री भी उनके साथ सती हो गयी| और देवी कुंती ने पांडवों का लालन पालन करने का जिम्मा उठाया|

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