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खुशी तुम्हारे अन्दर है, लेकिन तुम उसे पैसे और बाहरी वस्तुओं में ढूंढ रहे हो

    एक गाँव में एक बहुत अमीर व्यक्ति रहता था। उसके जीवन में कोई कमी नही थी। परन्तु वह फिर भी बहुत चिंतित रहता था। एक दिन उसके एक मित्र ने उसे एक ऋषि के बारे में बताया और कहा कि वह ऋषि बहुत ज्ञानी है। तुम्हे उनके पास अपनी चिंता का हल अवश्य मिल जायेगा।

    अपने मित्र की सलाह से वह व्यक्ति ऋषि क पास गया और अपनी सारी समस्या ऋषि को बताई कि उसके पास किसी चीज की कोई कमी नही है परन्तु फिर भी वह हर समय चिंता में रहता है।

    ऋषि ने उसकी समस्या सुनकर कहा – तुम कल आना मैं तुम्हे खुश और चिंतामुक्त रहने का तरीका बताऊंगा। अगले दिन व्यक्ति फिर आश्रम में पहुँच गया। वहां पहुँच कर उसने देखा कि ऋषि अपने आश्रम के बाहर कुछ ढूंढ रहे थे। यह देखकर व्यक्ति ने ऋषि से पूछा कि वह क्या ढूंढ रहे हैं?

    ऋषि ने व्यक्ति से कहा कि मेरी अंगूठी खो गयी है वही ढूंढ रहा हूँ।

    यह सुनकर वह व्यक्ति भी ऋषि के साथ उनकी अंगूठी ढूँढने में लग गया। काफी देर ढूंढने तक जब वह अंगूठी नही मिली तो उस व्यक्ति ने ऋषि से पूछा – आपकी अंगूठी कहा पर गिरी थी?

    ऋषि ने जवाब में कहा कि मेरी अंगूठी आश्रम की कुटिया में गिरी थी। लेकिन वहां काफी अँधेरा है इसलिए मैं अंगूठी यहां पर आश्रम के बाहर ढूंढ रहा हूँ|

    ऋषि की यह बात सुनकर व्यक्ति बहुत हैरान हुआ और उसने आश्चर्य से पूछा जब आपकी अंगूठी कुटिया में गिरी थी, तो आप उसे यहाँ बाहर क्यों ढूंढ रहें है?

    गुरु ने कहा यही तुम्हारी समस्या का हल है। खुशी तुम्हारे अन्दर है, लेकिन तुम उसे पैसे और बाहरी वस्तुओं में ढूंढ रहे हो। पूरा का पूरा समुन्द्र तुम्हारे अन्दर है लेकिन फिर भी तुम चम्मच लेकर बाहर पानी ढूंढ रहे हो। पैसा या सम्पति का जीवन में महत्त्व है लेकिन केवल पैसे से खुशियाँ नहीं खरीदी जा सकती।

    नया मकान, गाड़ी और ढेर सारी सम्पति रेगिस्तान में उस मृग तृष्णा की तरह है जो तुम्हे थोड़े समय के लिए खुश कर देती है। लेकिन फिर भी तुम प्यासे ही रहते हो। जब दोपहर में रेगिस्तान में दूर से देखते हैं तो लगता है कि कुछ दूरी पर बहुत बड़ा पानी का तालाब है और हम खुश हो जाते हैं। हम उस तालाब की ओर भागते हैं और जैसे जैसे हम उस तालाब की ओर आगे बढ़ते है वैसे वैसे वह तालाब आगे खिसकता जाता है। अंत में जाकर हमें पता लगता है कि वह तो रेगिस्तान में धूप के कारण बनी मृग तृष्णा थी जो एक आँखों का धोखा था।

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