Skip to content

भगवद गीता में छिपा है सफलता का सार – गीता सार Geeta Saar Video

    अगर हमें जीवन में सफलता पानी है तो इसे पाने का केवल एक ही उपाय है और वह है कर्म। जीवन में बिना कर्म किये हम कुछ नही पा सकते। इसका उल्लेख तो भगवद गीता में भी श्री कृष्ण द्वारा किया गया है। श्री कृष्ण ने गीता में उपदेश दिया है कि इंसान को कर्म करते रहना चाहिए और फल की इच्छा नही रखनी चाहिए।

    हम जिंदगी के असली मूल्य को भूल चुके हैं तथा अपने कर्म के पथ से भटक कर बहुत से निरर्थक कर्म करने लगे हैं। ये निरर्थक कर्म हमें जीवन में सफल नही होने देते। इन कर्मों से हम केवल अपनी परेशानियां ही बड़ा रहे हैं। इनसे जीवन में केवल तनाव ही हासिल होता है।

    अगर हम अपना जीवन तनाव मुक्त करना चाहते हैं तथा खुद को सफल देखना चाहते हैं तो एक बार हमें भगवान कृष्ण के इन विचारों पर जरूर ध्यान देना चाहिए।

    सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न इस लोक में है और ना ही कहीं और।

    जो मन को नियंत्रित नही करते, उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।

    अपने अनिवार्य कार्य करो क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।

    मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वह विश्वास करता है, वैसा ही वह बन जाता है।

    नर्क के तीन द्वार हैं- वासना, क्रोध और लालच।

    इस जीवन में ना कुछ खोता है और कुछ व्यर्थ होता है।

    मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।

    लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे। एक सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है।

    किसी दूसरे के साथ जीवन पूर्ण रूप से जीने से बेहतर है कि हम अपने स्वयं के भाग्य के अनुसार अपूर्ण जीयें।

    प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए गन्दगी का ढेर, पत्थर और सोना सभी समान हैं।

    व्यक्ति जो चाहे बन सकता है, यदि वह विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करे।

    हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है।

    अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है।

    भगवान प्रत्येक वस्तु में हैं और सबके ऊपर भी।

    किसी और का काम पूर्णता से करने से अच्छा है कि अपना काम करें, भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।

    मैं सभी प्राणियों को समान रूप से देखता हूं, न कोई मुझे कम प्रिय है, न अधिक।

    प्रबुद्ध व्यक्ति सिवाय ईश्वर के किसी और पर निर्भर नही करता।

    बुद्धिमान व्यक्ति कामुक सुख में आनंद नही लेता।

    जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है, वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है।

    कर्म मुझे बांधता नही, क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नही।

    केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है।

    स्वार्थ से भरा हुआ कार्य इस दुनिया को कैद में रख देगा। अपने जीवन से स्वार्थ को दूर रखें।

    बुद्धिमान व्यक्ति को समाज कल्याण के लिए बिना आसक्ति के काम करना चाहिए।

    उस से मत डरो जो अवास्तविक। वो न कभी था, न कभी होगा। जो वास्तविक है, वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नही किया जा सकता।

    जन्म लेने वालों के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है, जितना कि मृत होने वालों के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है, उस पर शोक मत करो।

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *