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क्या आप उस आज़ादी की लड़ाई के गुमनाम सिपाही के बारे में जानते हैं जिन्होंने 80 वर्ष की आयु में अंग्रेजों को मार भगाया था?

    सभी जानते हैं की भारत कई सालों तक गुलामी की ज़ंजीर में जकड़ा रहा था और असंख्य लोगों ने अपने प्राणों की आहुति देकर हमारे भारत को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद कराया| आज़ादी की लड़ाई में कई क्रांतिकारी शहीद हुए जैसे चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस इत्यादि लेकिन कई ऐसे भी लोग हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नो के कहीं दब कर रह गया| ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थे बाबू वीर कुंवर सिंह जिन्होंने 80 वर्ष का होते हुए भी अंग्रेजी सेना को नाको चने चबवा दिए थे|

    बाबू वीर कुंवर सिंह का नाम स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान की वजह से आज भी इज्जत के साथ लिया जाता है|बाबू वीर कुंवर सिंह का जन्म राजा भोज के वंशज और प्रसिद्द राजा बाबू साहिबजादा सिंह के घर बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर नामक गाँव में हुआ था| आज़ादी की लड़ाई में उनका साथ उनके भाइयों अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह ने दिया था| साथ ही उनके खानदान के बाबू उदवंत सिंह, गजराज सिंह और उमराव सिंह नामक जागीरदार भी थे जिन्होंने सदा ही अपनी आज़ादी की खातिर अंग्रेजों से जंग लड़ी लेकिन कभी भी अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं किया|

    सन 1857 में जब मंगल पाण्डे ने बगावत का बिगुल फूंका तो बिहार के दानापुर, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ से भी बगावत की लहर उठने लगी| झांसी, इलाहबाद, लखनऊ, कानपुर, मेरठ और दिल्ली में भी आज़ादी के लिए संघर्ष प्रारम्भ हो गया ऐसे में भारतीय क्रांतिकारियों के नेतृत्व की कमान 80 वर्ष के बाबू कुंवर सिंह ने अपने हाँथ में ली|इसी दौरान बाबू कुंवर सिंह ने भोजपुरिया जवानों एवं अन्य साथियों को लेकर 27 अप्रैल 1857 को आरा नगर पर धावा बोल दिया और अंग्रेजों को हरा कर वहां कब्जा कर लिया|

    अंग्रेजी सेना लाख कोशिशों के बाद भी आरा नगर पर दुबारा कब्ज़ा नहीं कर पाई अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच बीबीगंज और बिहिया के जंगलों में भीषण युद्ध हुआ| इस युद्ध में अंग्रेजी सेना को भारी नुक्सान उठाना पड़ा और फिर अंग्रेजी सेना ने अपनी रणनीति बदलते हुए जगदीशपुर पर हमला कर दिया और बाबू कुंवर सिंह को अपनी जन्मभूमि छोडनी पड़ी|बाबू कुंवर सिंह अपनी सेना के साथ बांदा, रीवा, बनारस, गोरखपुर, बलिया, गाजीपुर और आजमगढ़ पर अपनी जीत का परचम फहरा रहे थे और उधर उनके छोटे भाई अमर सिंह ने छापामार युद्ध के जरिये अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था|

    इतिहासकार होम्स के अनुसार 80 वर्ष की उम्र में उस वीर ने अंग्रेजों की ये हालत कर राखी थी अगर बाबू कुंवर सिंह जवान होते तो शायद पूरे पूर्वांचल से अंग्रेजो का सफाया हो गया होता| 23 अप्रैल सन 1858 में जगदीशपुर के निकट अंग्रेजो से लड़ते हुए बाबू कुंवर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए| फिर भी इस वीर योधा ने जगदीशपुर के किले से अंग्रेजी सरकार का झंडा जिसे यूनियन जैक कहा जाता था उतार फेंका और 26 अप्रैल 1858 को बाबू कुंवर सिंह ने अपनी आखिरी सांस ली और भारत की आज़ादी के इतिहास के पन्नो में सदा के लिए अमर हो गए|

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