कैलाश पर्वत की बर्फ़ीली चोटी पर एक दिन देवी पार्वती अपने दिव्य कक्ष में स्नान की तैयारी कर रही थीं।
महादेव ध्यान में लीन थे, शिवगण अपने-अपने कार्यों में व्यस्त थे।
उस क्षण पार्वती के मन में एक गहरा विचार आया —
“जब मैं स्नान करती हूँ, तो कोई स्त्री ही द्वार की रक्षा करे। किन्तु यहाँ तो सदा पुरुष ही उपस्थित रहते हैं — शिवगण, नंदी, भृंगी, सब। क्यों न मैं स्वयं अपनी शक्ति से एक रक्षक उत्पन्न करूँ?”
यह विचार कोई साधारण स्त्री का नहीं, आदि शक्ति का था — वही शक्ति जिससे संपूर्ण ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ है।
उन्होंने अपने शरीर के उबटन से मृत्तिका का एक मूर्त रूप बनाया — कोमल, सुंदर, किंतु तेजस्वी।
अपने संकल्प और दिव्य दृष्टि से उसमें प्राण डाले।
क्षणभर में मिट्टी की वह मूर्ति प्राणवान बालक में बदल गई।
पार्वती ने उसे प्रेमपूर्वक देखा और कहा,
“वत्स, आज से तू मेरा पुत्र है। जब तक मैं स्नान कर रही हूँ, तू इस द्वार की रक्षा करेगा। किसी को भीतर मत आने देना।”
बालक ने आज्ञा स्वीकार की — और इस प्रकार एक नए ब्रह्मांडीय युग की शुरुआत हुई।
🌿 जब शिवजी को अपने ही पुत्र ने द्वार पर रोक दिया
थोड़ी ही देर में भगवान शिव वहाँ पहुँचे।
ध्यान से उठे, अपने कक्ष की ओर बढ़े, और जैसे ही प्रवेश करना चाहा — उस बालक ने हाथ जोड़कर कहा,
“रुकिए! माता पार्वती के आदेश के बिना कोई भीतर नहीं जा सकता।”
शिव मुस्कुराए — “वत्स, तू मुझे पहचानता नहीं? मैं स्वयं पार्वती का स्वामी हूँ।”
बालक ने निश्चयपूर्वक कहा, “मेरे लिए केवल माता की आज्ञा ही सर्वोच्च है।”
महादेव ने गणों को भेजा, पर बालक ने सबको परास्त कर दिया।
वह बालक कोई साधारण नहीं था — शक्ति का अंश था, माँ की माया से उत्पन्न।
जब स्वयं शिव ने उसे हटाने का प्रयास किया, तो भी वह अडिग रहा।
अंततः, ब्रह्मांडीय लीला का समय आ गया —
शिव ने क्रोध में त्रिशूल उठाया और एक ही प्रहार में उस बालक का सिर काट दिया।
🌺 पार्वती का शोक और देवताओं का भय
क्षणभर में माता पार्वती बाहर आईं।
जब उन्होंने अपने पुत्र को निष्प्राण देखा, उनका हृदय विदीर्ण हो गया।
क्रोध से उनका सम्पूर्ण रूप ‘चंडी’ बन गया।
उन्होंने कहा —
“यदि मेरे पुत्र को जीवन नहीं मिला, तो यह सृष्टि भी जीवित नहीं रहेगी।”
उनके क्रोध से पृथ्वी कांपने लगी, दिशाएँ मौन हो गईं, और देवता भयभीत होकर भागे।
ब्राह्मा, विष्णु, इंद्र — सभी शिव के पास पहुँचे।
विष्णु ने कहा,
“महादेव, यह लीला अब ब्रह्मांड को अस्थिर कर देगी। पार्वती को शांत कीजिए। इस बालक को जीवन लौटाना ही एकमात्र उपाय है।”
🌞 हाथी का सिर और पुनर्जन्म का चमत्कार
शिव ने अपने गणों को आदेश दिया —
“उत्तर दिशा की ओर जाओ, जहाँ कोई जीव सोया हो, उसका सिर लाओ।”
गण देवता उत्तर दिशा की ओर गए और वहाँ उन्हें एक गज (हाथी) मिला, जो सोया हुआ था।
उन्होंने उसका मस्तक लाकर शिव के चरणों में रखा।
शिव ने त्रिशूल से उस सिर को उस बालक के शरीर से जोड़ा और जीवन का मंत्र उच्चारित किया।
क्षणभर में बालक की साँसें लौट आईं।
वह उठ बैठा — सिर अब हाथी का था, शरीर मानव का।
माता पार्वती ने उसे गले लगाया, आँसुओं से उसके मस्तक को धो दिया।
शिव बोले —
“यह अब से केवल तेरा नहीं, मेरा भी पुत्र है।
यह समस्त गणों का नायक होगा, इसका नाम होगा — ‘गणेश’।
‘गण’ का अर्थ है — समस्त जीव और शक्तियाँ, और ‘ईश’ का अर्थ है — स्वामी।
यह ‘गणों का ईश्वर’ कहलाएगा।”
🔱 देवताओं के वरदान और प्रथम पूज्य होने का कारण
बालक के पुनर्जन्म के बाद सभी देवता एकत्र हुए।
प्रत्येक ने उसे आशीर्वाद दिया —
- ब्रह्मा बोले, “जहाँ गणेश की पूजा होगी, वहाँ सिद्धि स्वयं आएगी।”
- विष्णु बोले, “जहाँ यह होंगे, वहाँ विघ्न कभी टिक नहीं सकेगा।”
- इंद्र ने कहा, “मेरे वज्र से यह सदैव सुरक्षित रहेगा।”
- पार्वती ने कहा, “जो मुझे पूजेगा, पहले गणेश का स्मरण करेगा।”
और शिव ने घोषणा की —
“गणेश के बिना कोई देवता पूजित नहीं होगा।
जो भी शुभ कार्य आरंभ होगा, उसका प्रारंभ गणेश से होगा।”
इस प्रकार गणेश बने — विघ्नहर्ता, सिद्धिदाता, और प्रथम पूज्य।
🌸 गजमुख का गूढ़ अर्थ
हाथी का सिर केवल एक कथा नहीं, बल्कि एक दर्शन है।
हाथी सबसे बुद्धिमान, धैर्यवान और स्मृतिशक्ति वाला प्राणी है।
गणेश जी का ‘गजमुख’ हमें सिखाता है कि शक्ति तब पूर्ण होती है जब उसमें बुद्धि और धैर्य का संगम हो।
उनका बड़ा पेट ‘लम्बोदर’ — जीवन के हर अनुभव को आत्मसात करने की क्षमता दर्शाता है।
उनका एक दाँत — ‘एकदंत’ — सत्य पर दृढ़ रहने का प्रतीक है।
हर अंग, हर प्रतीक उनके स्वरूप में जीवन का संदेश देता है।
🌺 अन्य पुराणों में गणेश जन्म का रहस्य
- गणेश पुराण कहता है कि गणेश वास्तव में ‘ओंकार’ के मूर्त स्वरूप हैं।
वे सृष्टि के आरंभ में ही ‘प्रणव नाद’ के रूप में विद्यमान थे। - ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि गणेश का जन्म शक्ति और शिव के संयोग का प्रत्यक्ष रूप है।
- स्कंद पुराण कहता है कि वे देवताओं के संरक्षण के लिए जन्मे।
- लिंग पुराण में उल्लेख है कि यह घटना सृष्टि-संतुलन की पुनर्स्थापना के लिए घटित हुई थी।
इस प्रकार, गणेश केवल पार्वती-पुत्र नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय शक्ति के प्रथम प्रकाश हैं।
🌼 गणेश चतुर्थी: पुनर्जन्म का उत्सव
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन ही गणेश जी का पुनर्जन्म हुआ था।
इस दिन की पूजा इसलिए विशेष है क्योंकि यह हमें याद दिलाती है कि
“हर अंत एक नई शुरुआत है।”
गणेश चतुर्थी केवल एक पर्व नहीं — यह ज्ञान, विनम्रता, और सृजन का पर्व है।
यह वह दिन है जब शक्ति और शिव ने मिलकर सृष्टि को नई दिशा दी।
🪔 अंतिम संदेश
भगवान गणेश की कथा केवल उनके जन्म की नहीं —
यह उस सत्य की कहानी है जहाँ भक्ति, आज्ञा, विनाश और पुनर्जन्म — सब एक साथ चलते हैं।
जहाँ पुत्र अपनी माँ के आदेश पर देवताओं तक को रोकता है, और वही पुत्र सृष्टि का प्रथम पूज्य बन जाता है।
उनकी कथा हमें सिखाती है कि कभी-कभी विनाश ही सृजन की शुरुआत होता है।
जहाँ सिर अलग हुआ, वहीं बुद्धि का प्रकाश जागा।
जहाँ क्रोध था, वहीं करुणा का जन्म हुआ।
इसीलिए कहा जाता है —
“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”
🕉️ श्री गणेशाय नमः।
ज्ञान, बुद्धि और भक्ति के प्रथम स्रोत को प्रणाम।
