भगवान हनुमान हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय और जीवंत देवताओं में से एक हैं। उन्हें भक्ति, शक्ति, समर्पण और सेवा का प्रतीक माना जाता है।
हर घर में उनकी आराधना होती है, हर युग में उनकी कथा सुनाई जाती है — लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ‘हनुमान’ नाम की उत्पत्ति कैसे हुई?
इस प्रश्न का उत्तर हमें न केवल उनकी बाल्यकाल की कथा से मिलता है, बल्कि यह नाम उनके स्वरूप, कर्म और उनके जीवन के गूढ़ अर्थ से भी जुड़ा हुआ है।
आइए जानते हैं कि भगवान हनुमान को ‘हनुमान’ नाम क्यों और कैसे मिला।
🌺 १. हनुमान का जन्म — देवताओं की कृपा से
त्रेतायुग के प्रारंभ में, अंजनादेवी और केसरी के घर जन्मे बालक हनुमान वायुपुत्र कहलाए।
कथा के अनुसार, जब अंजनादेवी ने भगवान शिव की उपासना कर पुत्र की कामना की, तब शिवजी ने स्वयं एक अंश लेकर अंजना के गर्भ में प्रवेश किया।
वहीं दूसरी ओर, उस समय दशरथ के यज्ञ से उत्पन्न हुआ पायस देवताओं द्वारा वायुदेव के माध्यम से अंजनादेवी के पास पहुँचाया गया।
इस प्रकार हनुमान जी का जन्म भगवान शिव के अंश और वायुदेव की शक्ति से हुआ।
इसीलिए उन्हें ‘शंकर सुवन केसरी नंदन’ कहा जाता है।
🌸 २. बाल हनुमान और सूर्य की ओर उड़ान
बाल्यकाल में हनुमान अत्यंत चंचल, उत्साही और दिव्य तेज वाले थे।
एक दिन उन्होंने आकाश में चमकते हुए सूर्य को देखकर सोचा कि यह कोई लाल फल है।
वे तुरंत उछले और सूर्य की ओर उड़ चले।
ज्यों ही वे सूर्य के समीप पहुँचे, देवताओं में हलचल मच गई।
इंद्रदेव ने अपने वज्र से प्रहार किया — और वह वज्र बाल हनुमान की ठोड़ी (हनु) पर लगा।
⚡ ३. ‘हनुमान’ नाम की उत्पत्ति — ठोड़ी की चोट से
इसी प्रसंग से उनके नाम की उत्पत्ति मानी जाती है।
संस्कृत में ‘हनु’ का अर्थ है ठोड़ी और ‘मान’ का अर्थ है वाला या जिसके पास हो।
वज्र से चोट लगने के कारण उनकी ठोड़ी थोड़ी विकृत हो गई, और उसी से वे ‘हनुमान’ कहलाए।
“हनुमान” = “हनु (ठोड़ी) + मान (वाला)” → “जिसकी ठोड़ी पर विशेष चिह्न हो।”
देवताओं ने उनकी अपार शक्ति और अजेयता देखकर उन्हें यह नाम दिया, जो आगे चलकर समस्त लोकों में प्रसिद्ध हुआ।
🌞 ४. वायुदेव का क्रोध और देवताओं का आशीर्वाद
जब इंद्र के वज्र से हनुमान जी घायल हुए, तो वायुदेव क्रोधित होकर समस्त वायु को स्थिर कर दिया।
प्राणवायु रुक जाने से तीनों लोकों में संकट उत्पन्न हो गया।
तब सभी देवता अंजनादेवी और वायुदेव के पास पहुँचे, क्षमा मांगी और बालक हनुमान को अनेक वरदान दिए —
- ब्रह्मा ने कहा: “तुम अमर रहोगे।”
- इंद्र ने वर दिया: “मेरा वज्र अब कभी तुम्हें नहीं छू सकेगा।”
- सूर्यदेव ने वर दिया: “मैं तुम्हें ज्ञान दूँगा।”
- विष्णु ने कहा: “तुम मेरे कार्य में सदा सहायक रहोगे।”
और तभी से बालक ‘हनुमान’ दिव्य शक्ति, ज्ञान और भक्ति का प्रतीक बन गए।
🪶 ५. नाम के पीछे छिपा गूढ़ अर्थ
‘हनुमान’ शब्द का अर्थ केवल ठोड़ी से नहीं जुड़ा है।
इस नाम में बहुत गहराई है —
‘हनु’ शब्द संहार या विनाश से भी जुड़ा है, और ‘मान’ का अर्थ गौरव या गरिमा भी होता है।
इस दृष्टि से ‘हनुमान’ का एक अर्थ यह भी है —
“जो दुष्टता का संहार कर धर्म की गरिमा को बनाए रखे।”
इस प्रकार ‘हनुमान’ नाम उनके चरित्र का प्रतीक है —
भक्ति में विनम्र, शक्ति में अजेय, और धर्म के लिए सदैव समर्पित।
🔱 ६. विभिन्न ग्रंथों में नाम का उल्लेख
वाल्मीकि रामायण, सुंदरकांड और अन्य पुराणों में ‘हनुमान’ नाम के कई अर्थ बताए गए हैं।
- वाल्मीकि रामायण (सुंदरकांड) में उन्हें ‘कपिश्रेष्ठ हनुमान’ कहा गया है।
- शिव पुराण में कहा गया है कि यह नाम स्वयं ब्रह्मा ने दिया था।
- रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने लिखा — “जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।”
यहाँ ‘हनुमान’ नाम शक्ति, ज्ञान और तेज का पर्याय बन जाता है।
🌼 ७. हनुमान नाम का भक्ति में महत्व
‘हनुमान’ नाम का जप स्वयं में एक साधना है।
जो व्यक्ति नित्य “जय हनुमान” कहता है, उसके भीतर आत्मबल और निर्भयता का संचार होता है।
यह नाम केवल एक पहचान नहीं — यह एक ऊर्जा का बीज मंत्र है।
जब भक्त “हनुमान” का उच्चारण करता है, तो उसके भीतर का भय नष्ट होता है, और जीवन में उत्साह का संचार होता है।
🌿 ८. हनुमान — नाम से लेकर स्वरूप तक प्रतीक
हनुमान जी का नाम, उनका शरीर, उनका स्वभाव — सब कुछ प्रतीकात्मक है।
उनकी ठोड़ी पर लगी चोट हमें याद दिलाती है कि
“असली शक्ति वह नहीं जो घावों से बचाए, बल्कि वह है जो घावों के बावजूद भी धर्म के लिए खड़ा रहे।”
इसीलिए हनुमान जी के नाम के पीछे केवल एक घटना नहीं, बल्कि त्याग, साहस और भक्ति की संपूर्ण गाथा छिपी है।
🌺 ९. ‘हनुमान’ नाम — युगों से अजर-अमर
समय बीतता गया, युग बदलते गए, लेकिन ‘हनुमान’ नाम आज भी उतना ही प्रभावशाली है।
भक्ति के हर रूप में — मंदिरों में, आरतियों में, कवचों में, या साधना में — यह नाम गूंजता रहता है।
“राम नाम के संग हनुमान नाम चले —
एक राम का आश्रय, एक हनुमान का बल।”
🔔 १०. निष्कर्ष
भगवान हनुमान का नाम केवल एक संयोग नहीं है, यह एक कथा का प्रतीक और एक दर्शन का संदेश है।
उनकी ठोड़ी पर लगी चोट से लेकर वायुदेव के आशीर्वाद तक, हर क्षण यह दर्शाता है कि
“जब कोई भक्त निष्कपट भक्ति करता है, तो हर चोट भी उसे दिव्यता प्रदान करती है।”
इसलिए जब हम “जय हनुमान” कहते हैं,
तो यह केवल नाम का उच्चारण नहीं, बल्कि भक्ति, विनम्रता और शक्ति का स्मरण है।
🌿
जय हनुमान!
श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउं रघुवर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥
