क्या आपने कभी सोचा है —
साँप ज़हर से क्यों भरे हैं?
बिच्छू, मकड़ी, या जहरीले कीड़ों में यह घातक विष आखिर आया कहाँ से?
क्या यह सिर्फ़ प्रकृति का विकास है या इसके पीछे कोई दिव्य रहस्य छिपा है?
यह सवाल उतना ही पुराना है जितनी पुराणों की कथाएँ। और हैरानी की बात यह है कि जहाँ विज्ञान इस रहस्य को विकासवाद से जोड़ता है, वहीं हमारे पुराण और धार्मिक ग्रंथ इसे देवताओं और असुरों के संघर्ष से जोड़ते हैं।
🌍 जब धरती पर पहली बार विष उतरा
हिंदू धर्म के अनुसार, धरती पर पहली बार ज़हर तब प्रकट हुआ जब समुद्र मंथन हुआ था।
देवता और असुर, दोनों ने मिलकर अमृत की प्राप्ति के लिए क्षीर सागर का मंथन किया।
लेकिन अमृत से पहले जो निकला — वह था हलकालक विष (Halahala Vish), इतना घातक कि उसका एक बूंद भी संपूर्ण सृष्टि का अंत कर सकती थी।
🔥 शिव का त्याग — जब उन्होंने विष पी लिया
जब यह भयानक विष निकला, तो पूरा ब्रह्मांड हाहाकार कर उठा। देवता, असुर, ब्रह्मा और विष्णु — कोई भी उस विष को संभाल नहीं पा रहे थे। तभी सभी देवगण भागे महादेव शिव के पास।
भगवान शिव ने बिना एक क्षण सोचे, उस विष को अपनी हथेली में लेकर पी लिया ताकि सृष्टि बच सके।
माता पार्वती ने उस विष को उनके कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया, और इसीलिए उनका गला नीला हो गया —
तभी से वे नीलकंठ कहलाए।
लेकिन शिव के कंठ में बचे कुछ विषकण हवा, जल और पृथ्वी में फैल गए। यही वह क्षण था जब धरती पर विष का बीज पड़ा।
🌱 विष से जन्मे जीव
पुराणों में कहा गया है कि शिव के कंठ से निकले इस विष ने जब पृथ्वी को स्पर्श किया, तब वह कुछ जीवों के शरीर में समा गया —
साँप, बिच्छू, मकड़ी, और कुछ कीट-पतंगों ने यह विष धारण कर लिया।
यह विष इन जीवों का रक्षक कवच बन गया।
साँपों ने इस विष का उपयोग आत्मरक्षा के लिए किया,
मकड़ियाँ अपने शिकार को पकड़ने के लिए,
और बिच्छू अपने अस्तित्व को बचाने के लिए।
यानी यह विष विनाश का नहीं, संरक्षण का प्रतीक बन गया।
🐍 नागों का उद्गम और उनका संबंध विष से
पुराणों में एक और उल्लेख है —
विष्णु भगवान जब शेषनाग पर विश्राम करते हैं, तो वह नागों के आदिपुरुष माने जाते हैं।
उनके हजारों फनों में विश्व का भार टिका है, और उनके फनों में भी विष की ऊर्जा होती है।
नाग वंश — जैसे तक्षक, वासुकी, कर्कोटक, शंखपाल आदि — इस विष की शक्ति के कारण देवता भी कहलाते हैं।
उनका विष केवल मारता नहीं, बल्कि संरक्षण और संतुलन का कार्य करता है।
कहा जाता है कि अगर धरती पर साँप न हों, तो इंसानों की फसलें और पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाएगा।
⚗️ वैज्ञानिक दृष्टि से
विज्ञान के अनुसार, जहरीले जीवों की उत्पत्ति करोड़ों साल पहले हुई थी।
जब पृथ्वी पर जीवन का विकास हो रहा था, तब प्राकृतिक चयन (natural selection) और अनुकूलन (adaptation) की प्रक्रिया के दौरान कुछ जीवों ने अपने बचाव के लिए विष विकसित किया।
विष उनके लिए हथियार नहीं, बल्कि रक्षा कवच था।
कई वैज्ञानिक मानते हैं कि:
- साँपों ने शिकार को जल्दी मारने के लिए विष विकसित किया।
- मकड़ियाँ अपने जाले में फंसे कीड़ों को स्थिर करने के लिए विष का उपयोग करती हैं।
- बिच्छू जैसे जीव अंधेरे में रहने के कारण शत्रुओं से बचने के लिए यह रक्षा प्रणाली विकसित करते हैं।
विज्ञान कहता है —
जहाँ डर और संघर्ष है, वहाँ प्रकृति नई ताकतें पैदा करती है।
और यही विष वास्तव में जीवों के अस्तित्व की रक्षा का परिणाम था।
🕉️ पुराणों में “विष” का आध्यात्मिक अर्थ
हिंदू दर्शन में विष को सिर्फ़ ज़हर नहीं माना गया —
बल्कि यह नकारात्मकता, क्रोध, अहंकार और अज्ञान का प्रतीक है।
जब शिव ने हलाहल पिया, तो यह सिर्फ़ भौतिक विष नहीं था।
उन्होंने संसार की नकारात्मकता को स्वयं में समेट लिया ताकि सृष्टि शुद्ध रह सके।
इसलिए “विष” को नियंत्रण और संयम का प्रतीक भी कहा गया।
वही संदेश हमारे भीतर के विष के लिए भी है —
यदि हम अपने क्रोध, लालच, ईर्ष्या को नियंत्रित कर लें, तो वही ऊर्जा जीवन का रक्षक बन जाती है।
🐍 विषधर प्राणी — शिव के साथी
आपने देखा होगा, भगवान शिव के गले में साँप लिपटा रहता है।
वह नाग — वासुकी — विष का प्रतीक है, और शिव का गले लगाना यह दर्शाता है कि उन्होंने “विष” को नियंत्रित किया, न कि नष्ट किया।
यानी, जहाँ सामान्य मनुष्य विष से डरता है, वहाँ शिव उसे गले लगाते हैं।
यह हमें सिखाता है —
जीवन के नकारात्मक तत्वों को खत्म नहीं, बल्कि संयम से संभालना चाहिए।
🌊 समुद्र मंथन के बाद पृथ्वी पर फैला विष
समुद्र मंथन में हलाहल के साथ और भी कई जीव निकले — जैसे रत्न, कामधेनु, अप्सराएँ, और अंत में अमृत।
लेकिन हलाहल जब जल में घुला, तब समुद्र और नदियों के कुछ हिस्सों में विषैले तत्व मिल गए।
पुराणों के अनुसार, यहीं से कुछ जलीय जीवों ने विष की शक्ति धारण की।
इसी कारण कुछ समुद्री जीव जैसे जेलीफिश, स्टोनफिश, सी-स्नेक आदि अत्यंत जहरीले हैं।
यहाँ तक कि आधुनिक वैज्ञानिक भी मानते हैं कि समुद्री जीवों के विष की रासायनिक संरचना “प्राचीन तत्वों” से जुड़ी हुई है।
⚖️ विष का संतुलन – प्रकृति का रहस्य
हर चीज़ जो प्रकृति में होती है, उसका एक उद्देश्य होता है।
अगर विष है, तो उसके साथ अमृत भी है।
अगर ज़हर है, तो उसका प्रतिकार भी है।
इसी संतुलन के कारण धरती पर जीवन संभव है।
अगर विष न होता, तो कई बीमारियाँ, संक्रमण और कीटजन्य रोग मानव सभ्यता को नष्ट कर देते।
आज वही विष औषधि बन चुका है —
साँप का विष कैंसर, रक्तचाप और न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है।
🧘♂️ आध्यात्मिक दृष्टि से — “विष” हमारे भीतर भी है
अगर आप ध्यान से सोचें, तो हर इंसान के भीतर भी “विष” है —
क्रोध, ईर्ष्या, लालच, और घृणा।
जब हम इन विषों को निगलना सीखते हैं, उन्हें दूसरों पर नहीं उगलते —
तभी हम नीलकंठ बनते हैं।
भगवान शिव हमें यही सिखाते हैं —
विष से भागो मत, उसे संयम से संभालो।
क्योंकि हर विष के भीतर अमृत छिपा है।
💫 धरती पर विष का रहस्य
तो, जब पूछा जाए — “धरती पर जहरीले जीव कैसे बने?”
उत्तर है — यह न तो केवल जीवविज्ञान की कहानी है, न केवल पुराणों की।
यह दोनों का संगम है।
विज्ञान कहता है – प्रकृति ने इन्हें खुद को बचाने के लिए बनाया।
पुराण कहते हैं – शिव ने विष पी लिया ताकि जीवन बच सके।
और जब उन्होंने ऐसा किया, तब उस विष का अंश धरती पर बिखर गया —
वहीं से शुरू हुई जहरीले प्राणियों की कहानी।
🌺 एक अनकही सीख
धरती का हर जीव, चाहे विषधर हो या निर्दोष, उसी सृष्टिक्रम का हिस्सा है।
हर शक्ति, चाहे विष हो या अमृत — उसका अस्तित्व इसलिए है क्योंकि प्रकृति ने उसे आवश्यक माना।
शिव का संदेश साफ़ है —
“जहाँ विष है, वहाँ जीवन भी है। जहाँ अंधकार है, वहीं प्रकाश भी जन्म लेता है।”
और यही धरती का संतुलन है —
जिस दिन यह विष समाप्त हो जाएगा, उसी दिन जीवन भी अपना अर्थ खो देगा।
क्या आप जानते हैं?
हर बार जब बिजली गिरती है, या भूकंप आता है — पुराणों के अनुसार यह वही ऊर्जा है जो समुद्र मंथन के समय से अब तक धरती के भीतर छिपी हुई है।
शायद यह विष की शक्ति ही है जो धरती को अब तक जीवित रखे हुए है।