lord vishnu

कभी-कभी जब सृष्टि थक जाती है,
जब धरती कराह उठती है,
जब पाप का भार इतना बढ़ जाता है कि स्वयं आकाश मौन हो जाता है —
तब परमात्मा को अपने सिंहासन से उतरना पड़ता है।

ऐसा ही एक समय आया था,
जब भगवान विष्णु — जो सृष्टि के पालनहार हैं,
जिन्हें हम शांति, संतुलन और प्रेम का प्रतीक मानते हैं —
उन्होंने एक ऐसा रूप लिया,
जिसे सुनकर आज भी मन आश्चर्य और भक्ति से भर जाता है।

उन्होंने वाराह (सूअर) का रूप धारण किया।
एक दिव्य सूअर — जिसने अपने दाँतों पर धरती को उठाया था।


🌏 धरती की पुकार — जब सृष्टि डूब गई थी

कहते हैं, हर युग में जब अधर्म बढ़ता है,
तो सबसे पहले धरती दुखी होती है।
वह माँ है — उसकी छाती पर ही सारे जीव जीते हैं।

हिरण्याक्ष नामक एक असुर,
जिसे अपनी शक्ति का घमंड था,
उसने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया था।
उसने धरती को पकड़ा और गहराई में —
समुद्र के गर्भ में — फेंक दिया।

धरती डूब गई।
जैसे किसी माँ को उसके बच्चों से अलग कर दिया गया हो।
देवता रो पड़े।
वह सब विष्णु के द्वार पर पहुँचे —
“प्रभु, सृष्टि नष्ट हो जाएगी, कृपा करें।”

विष्णु कुछ क्षण मौन रहे।
फिर उनकी आँखों में करुणा की लहर उठी।
वह बोले —

“जब माँ पुकारे, तो पुत्र कैसे चुप रहे?”

और तभी, उन्होंने ऐसा रूप धारण किया
जिसे देखकर सारे देवता विस्मित रह गए —
वह सूअर बने।


🐗 विष्णु का वाराह रूप — जब ईश्वर ने मिट्टी को अपनाया

कल्पना करो —
वह विराट सूअर, जिसका शरीर पहाड़ों जितना बड़ा था,
जिसकी गर्जना से आकाश हिल गया,
जिसके कदमों से पृथ्वी थरथरा उठी।

देवता पहले घबरा गए —
क्योंकि उन्होंने कभी ईश्वर को ऐसा रूप लेते नहीं देखा था।

पर फिर ब्रह्मा मुस्कुराए और बोले —

“यह रूप कुरूप नहीं, करुणामय है।”

वाराह का अर्थ था —
“वह जो मिट्टी में उतरकर भी पवित्र रहे।”

विष्णु ने यह रूप इसलिए लिया,
क्योंकि धरती जल में डूबी थी —
और केवल वही प्राणी उसे ऊपर ला सकता था
जो मिट्टी और जल दोनों से जुड़ा हो।


⚔️ हिरण्याक्ष से संग्राम — जब धर्म और अहंकार टकराए

विष्णु वाराह रूप में समुद्र में उतरे।
लहरें फटने लगीं।
जल की गहराईयों में छिपा हिरण्याक्ष गरजा —

“कौन है जो मेरे क्षेत्र में आया है?”

विष्णु बोले नहीं।
बस अपनी गर्जना से उत्तर दिया —
जिससे समुद्र काँप उठा।

तीन दिन और तीन रात तक
धर्म और अधर्म के बीच वह युद्ध चला।
विष्णु का हर प्रहार आकाश में गूँजता,
और हिरण्याक्ष का हर वार समुद्र को तोड़ देता।

अंततः, विष्णु ने उसे अपने गदा से परास्त किया।
फिर बड़ी कोमलता से
धरती को अपने दाँतों पर उठाया —
जैसे माँ अपने शिशु को गोद में भर लेती है।


🌿 धरती का उद्धार — प्रेम और त्याग की प्रतिमा

धरती देवी ने आँखें खोलीं।
वह बोलीं —

“प्रभु, आपने मुझे जीवन दिया।
पर बताइए, जब-जब मैं डूबूँगी,
क्या आप यूँ ही आएँगे?”

विष्णु मुस्कुराए।
उनकी आँखों में करुणा थी,
जैसे कोई पिता अपने बच्चे को समझा रहा हो —

“माँ, जब तक सृष्टि रहेगी,
जब तक प्रेम रहेगा,
मैं किसी न किसी रूप में आऊँगा।
क्योंकि तुम्हें बचाना मेरा कर्तव्य नहीं,
मेरा प्रेम है।”

यह संवाद सिर्फ़ देवी-देवता का नहीं था।
यह प्रकृति और परमात्मा का संवाद था।
वह क्षण था — जब ब्रह्मांड ने फिर से साँस ली।


🔮 वाराह अवतार का रहस्य — मिट्टी में छिपा ईश्वर

अब सोचो ज़रा —
भगवान विष्णु, जिन्होंने कमल के फूल से ब्रह्मा को उत्पन्न किया,
जिनकी आँखों में शांति और करुणा बसती है,
उन्होंने सूअर का रूप क्यों लिया?

क्योंकि उन्होंने यह दिखाया कि
ईश्वर की महिमा उसके रूप में नहीं,
उसके कर्म में है।

वाराह अवतार हमें सिखाता है —
जो मिट्टी में उतरने से नहीं डरता,
वह ही सृष्टि को बचा सकता है।

हर इंसान के भीतर भी एक “वाराह” है —
जो तब जागता है जब हम खुद में डूब जाते हैं।
वह हमें फिर से उठाता है,
फिर से जीना सिखाता है।


🌸 मानव जीवन के लिए संदेश

कभी-कभी जीवन भी समुद्र बन जाता है —
उलझनों, दुखों और पापों का सागर।
हम उसमें डूब जाते हैं।
पर जब भीतर का वाराह जागता है —
जब आत्मा पुकारती है —
तो ईश्वर स्वयं हमारे भीतर से उठ खड़ा होता है।

वाराह कोई कथा नहीं,
एक स्मरण है —
कि जब भी हम हार मान लें,
ईश्वर हममें ही किसी रूप में जन्म लेते हैं।


🪔 आज के युग में वाराह अवतार का अर्थ

आज धरती फिर कराह रही है।
पेड़ कट रहे हैं, नदियाँ सूख रही हैं,
मानव का अहंकार बढ़ रहा है।

शायद आज भी वह पुकार रही है —
“प्रभु, मुझे फिर से उठाओ।”

पर आज ईश्वर बाहर से नहीं आएगा।
आज हम ही उसका वाराह रूप बनना होगा।
धरती को उसके आँसुओं से निकालना होगा।
मानवता को उसके अंधकार से बचाना होगा।

क्योंकि अब ईश्वर बाहर नहीं,
हमारे कर्मों में रहेगा।


🌞 निष्कर्ष — जब ईश्वर खुद मिट्टी बन जाता है

वाराह अवतार का रहस्य यही है कि
ईश्वर के लिए कोई रूप छोटा नहीं होता।
वह वहीं आता है जहाँ सबसे ज़्यादा अंधेरा होता है।

वह मिट्टी में उतरता है,
क्योंकि वहीं जीवन की जड़ें होती हैं।

वह हमें यह सिखाता है —

“सच्चा प्रेम पवित्रता से नहीं,
त्याग से जन्म लेता है।”

वाराह अवतार केवल एक कथा नहीं,
वह एक संदेश है —
कि जब धरती डूबे,
जब मनुष्य भटक जाए,
तो कोई न कोई वाराह रूप में जरूर जन्म लेता है —
कभी विष्णु बनकर,
कभी एक इंसान बनकर,
कभी तुम्हारे भीतर,
कभी मेरे भीतर।


🌺
संदेश:

जब तक मिट्टी में जीवन है,
तब तक ईश्वर मिट्टी में उतरता रहेगा।
क्योंकि सृष्टि की रक्षा सिर्फ़ आसमान से नहीं,
धरती से जुड़कर ही की जा सकती है।

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