बहुत समय पहले की बात है,
अलकापुरी नगरी में धन के देवता कुबेर रहते थे।
सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात —
जहाँ नज़र जाती, वहाँ दौलत ही दौलत थी।
देवताओं में उनकी चर्चा थी —
“कुबेर सबसे अमीर हैं,
उनके महल में बादलों से भी ज़्यादा चमक है।”
लेकिन धीरे-धीरे,
वो धन उनका गौरव नहीं,
उनका अहंकार बन गया।
वो सोचने लगे —
“मुझसे बड़ा कौन है इस सृष्टि में?
मेरे पास तो अनंत खज़ाने हैं!”
💰 अहंकार का जन्म
एक दिन कुबेर ने सोचा,
“क्यों न अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करूँ?
देवताओं, ऋषियों, सबको बुलाऊँ,
ताकि सब जानें — असली वैभव क्या होता है!”
उन्होंने एक भव्य भोज का आयोजन किया।
देवताओं को निमंत्रण भेजा —
इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु — सभी को।
फिर उन्होंने सोचा,
“भगवान शिव और माता पार्वती को भी बुलाना चाहिए,
ताकि वो भी जानें, कुबेर कितना समृद्ध है।”
🕉️ निमंत्रण कैलाश पहुँचा
जब निमंत्रण लेकर दूत कैलाश पर्वत पहुँचा,
तो गणेश जी माता-पिता के पास बैठे लड्डू खा रहे थे।
शिव मुस्कुराए —
“कुबेर का भोज? अहंकार की महक आ रही है।”
पार्वती ने कहा,
“भले ही अहंकार हो, पर निमंत्रण सच्चा है।
किसी को तो जाना चाहिए।”
शिव बोले,
“तो क्यों न गणेश जाएँ?
उन्हें भी अनुभव होगा कि ‘धन’ और ‘ज्ञान’ में क्या अंतर है।’”
गणेश जी ने हाथ जोड़कर कहा,
“ठीक है माता, मैं जाता हूँ।
पर एक शर्त — जो भी भोजन वहाँ होगा,
मैं पूरा तृप्त होकर लौटूँगा।”
शिव हँसे — “यही तो असली परीक्षा होगी।”
🍽️ कुबेर का भोज शुरू हुआ
गणेश जी पहुँचे अलकापुरी।
सामने सोने की दीवारें,
हीरे से जड़ी फर्शें,
सुगंध से महकता महल।
कुबेर ने गर्व से कहा,
“स्वागत है गणेश जी!
आज आप देखेंगे कुबेर का वैभव!”
गणेश मुस्कुराए,
“मुझे तो बस भूख लगी है।”
भोज शुरू हुआ —
सैकड़ों व्यंजन,
मिठाइयों के पहाड़,
घी, दूध, मेवे, फल — सब परोसा गया।
गणेश जी ने खाना शुरू किया।
एक, दो, दस, पचास…
थालियाँ खाली होती गईं।
कुबेर मुस्कुराता रहा —
“और लाओ!”
लेकिन कुछ ही देर में,
गणेश जी ने सैकड़ों थालियाँ खत्म कर दीं,
फिर बोले,
“अब कुछ और है?”
रसोई में अफरातफरी मच गई।
भंडार खुल गए,
अनाज के पहाड़ गिर गए,
फिर भी गणेश जी की भूख न थमी।
🔥 जब सब कुछ खत्म हो गया
अब कुबेर के महल में हलचल थी।
गणेश जी ने बर्तन तक खा लिए,
फिर फर्श की सजावट चबाने लगे!
कुबेर घबरा गए —
“हे गणेश जी, ये क्या कर रहे हैं?”
गणेश बोले,
“मुझे तो आपने खिलाने बुलाया था।
अब मेरी भूख शांत करो।”
कुबेर घुटनों पर गिर पड़े —
“हे प्रभु! मेरा सारा धन, सारा भंडार समाप्त हो गया।
अब क्या करूँ?”
गणेश बोले,
“कुबेर, तुम्हारा धन तुम्हारा अभिमान था।
जो धन में अहंकार घुल जाए,
वो भूख की अग्नि भी नहीं बुझा सकता।”
कुबेर काँपते हुए बोले,
“अब क्या करूँ, प्रभु?”
🪔 विनम्रता की सीख
गणेश ने कहा,
“कैलाश जाओ,
माता पार्वती के चरणों में जाओ,
और उनसे एक मुट्ठी भोजन माँग लाओ —
श्रद्धा से, अहंकार से नहीं।”
कुबेर दौड़े कैलाश पहुँचे।
पार्वती मुस्कुराईं,
उन्हें एक मुट्ठी चावल दिया और कहा,
“इसे प्रेम से भगवान गणेश को अर्पित करना।”
कुबेर ने वापस जाकर गणेश जी के सामने वो मुट्ठी चावल रखी।
गणेश जी ने मुस्कुराकर खाया —
और बोले,
“अब तृप्त हूँ।”
कुबेर हैरान हुए —
“इतने बड़े भंडार से भूख न मिटी,
पर एक मुट्ठी चावल से कैसे तृप्त हो गए?”
गणेश ने कहा,
“क्योंकि वो भोजन प्रेम और नम्रता से आया था,
न कि दिखावे और अहंकार से।”
कहानी का सार
कुबेर ने सिर झुका लिया।
उस दिन उन्हें समझ आया —
“धन का मूल्य तब है,
जब उसमें विनम्रता का स्वाद हो।”
उसके बाद कुबेर ने कभी अपने धन का घमंड नहीं किया।
उन्होंने उसे सेवा, दान और धर्म में लगाना शुरू किया।
💫 सीख जो आज भी उतनी ही सच है
कभी-कभी,
हम सबके भीतर भी कुबेर जैसा अहंकार पनपता है।
हम सोचते हैं —
“मेरे पास सब कुछ है, मैं सबसे बड़ा हूँ।”
लेकिन ज़रा सा झटका —
एक छोटी सी परीक्षा —
और पता चलता है,
सारा वैभव भी एक भूख नहीं मिटा सकता,
अगर दिल में विनम्रता नहीं है।
इसलिए, जब भी तुम्हें अपने जीवन में घमंड महसूस हो,
तो गणेश जी की यह कथा याद रखना —
“सच्चा वैभव धन से नहीं,
विनम्रता से आता है।”
