Ramayana fame Vibhishan ends his life by jumping in front of a train the reason was terri

कुछ लोग परिवार के साथ खड़े रहते हैं,
और कुछ लोग सत्य के साथ —
चाहे इसके लिए उन्हें पूरे संसार के खिलाफ ही क्यों न जाना पड़े।

विभीषण ऐसा ही एक नाम है।
वो राक्षसों के घर में पैदा हुआ,
लेकिन उसका दिल देवताओं से भी ज़्यादा पवित्र था।

उसकी कहानी युद्ध की नहीं,
बल्कि उस तपस्या की है
जो एक मनुष्य तब करता है, जब उसे सही रास्ता चुनने के लिए
अपने ही लोगों को पीछे छोड़ना पड़ता है।


👶 अंधकार के घर में जन्मा एक उजाला

विभीषण का जन्म हुआ ऋषि विश्रवा और कैकसी के घर में —
वही माता-पिता जिन्होंने रावण और कुंभकर्ण को जन्म दिया।

रावण शक्तिशाली था,
कुंभकर्ण बलवान था,
पर विभीषण शांत था —
धैर्यवान, विचारशील, और धर्मप्रिय।

जब उसके भाई शक्ति और यश के पीछे भागते थे,
वो साधना और भक्ति में लीन रहता था।

एक दिन उसकी माँ बोली —

“तू राक्षस है बेटा, ये राम-राम जपना तेरे खून में नहीं है!”

विभीषण मुस्कुराया —

“माँ, जन्म का कुल मेरा शरीर बताता है,
पर आत्मा का कुल तो कर्म से तय होता है।”

उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे आशीर्वाद दिया —

“तू कठिन से कठिन परिस्थिति में भी धर्म का साथ नहीं छोड़ेगा।”


🪔 सीता हरण और विभीषण की चेतावनी

जब रावण सीता माता का हरण करके लंका लाया,
विभीषण का हृदय कांप उठा।

वो जानता था कि यह कर्म केवल एक स्त्री का नहीं,
बल्कि मर्यादा का अपहरण था।

वो दरबार में गया और रावण से बोला —

“भैया, आप राजा हैं, राक्षसों के स्वामी हैं,
पर ये जो आपने किया है, ये आपको विनाश की ओर ले जाएगा।
सीता माता को लौटा दीजिए,
क्योंकि जिनके पति राम हैं, वो कोई साधारण मनुष्य नहीं — स्वयं विष्णु हैं।”

रावण का चेहरा क्रोध से लाल हो गया।

“विभीषण! तू मेरा भाई होकर मेरा अपमान करता है?
मैं रावण हूँ — त्रिलोक विजेता!
मुझसे कोई युद्ध नहीं जीत सकता।”

विभीषण शांत स्वर में बोला —

“भैया, जो युद्ध धर्म से हारता है,
उसे कोई शक्ति नहीं बचा सकती।”

रावण ने उसे अपमानित करके दरबार से निकाल दिया।
और विभीषण, आंसुओं से भरे नेत्रों से,
अपने स्वजनों को छोड़कर चला गया —
पर साथ ले गया धर्म का प्रकाश।


💔 जब भाई से बड़ा हुआ धर्म

विभीषण का यह निर्णय आसान नहीं था।
उसने अपना घर छोड़ा, अपना कुल छोड़ा,
क्योंकि उसके अंतरात्मा ने कहा —

“जो गलत के साथ खड़ा है, वो भी गलत है।”

वो समुद्र पार करके भगवान राम के पास पहुँचा।
वानरों और सुग्रीव ने उसे देखकर कहा —

“ये तो राक्षस है, रावण का भाई!
कैसे भरोसा करें इस पर?”

पर भगवान राम मुस्कुराए —

“किसी को उसके कुल से नहीं,
उसके हृदय से परखा जाता है।”

और इस तरह विभीषण बन गया राम का साथी।


⚔️ लंका का युद्ध और विभीषण का सत्य

युद्ध शुरू हुआ।
विभीषण ने राम को लंका के रहस्य बताए —
क्योंकि उसे अपने कुल की रक्षा नहीं,
सत्य की रक्षा करनी थी।

जब कुंभकर्ण मारा गया,
विभीषण की आँखों से आँसू बह निकले।
वो बोला —

“वो अधर्म के साथ था,
पर मेरा भाई था…।”

उसके दिल में युद्ध नहीं था,
केवल दुःख और धर्म का संघर्ष था।

जब रावण रणभूमि में गिरा,
विभीषण दौड़ता हुआ उसके पास पहुँचा।
उसने उसके सिर को अपनी गोद में रखा और बोला —

“भैया, मैंने आपका विरोध नहीं किया,
मैंने आपके भीतर के अधर्म का विरोध किया।”

रावण ने अंतिम साँस लेते हुए कहा —

“विभीषण, तू सही था…
मेरा सबसे बड़ा शत्रु कोई और नहीं —
मेरा अहंकार था।”


👑 राज्य का ताज और भाई का दर्द

युद्ध समाप्त हुआ।
राम ने विभीषण को लंका का राजा बनाया।
चारों ओर विजय की ध्वनि गूँज उठी।

पर विभीषण का मन शांत था।
उसने रावण की चिता के पास खड़े होकर कहा —

“भैया, तुमने तीनों लोक जीते,
पर स्वयं पर विजय नहीं पा सके।
मैं वही गलती कभी नहीं दोहराऊँगा।”

उस दिन से विभीषण ने लंका को धर्म, न्याय और विनम्रता से चलाया।
पर भीतर से वह हमेशा विनम्र रहा —
क्योंकि उसने जीत कर भी बहुत कुछ खोया था।


🌼 विभीषण की विरासत

विभीषण की कहानी यह नहीं सिखाती कि उसने भाई से विश्वासघात किया।
वो सिखाती है कि —

कभी-कभी सच्चाई की राह पर चलना ही सबसे बड़ा त्याग होता है।

वो सिखाता है कि
असली निष्ठा व्यक्ति से नहीं, धर्म से होती है।

रावण शक्तिशाली था,
पर अधर्म ने उसे गिरा दिया।
विभीषण कमजोर दिखा,
पर धर्म ने उसे अमर बना दिया।


🌺 विभीषण का संदेश

“जब तुम्हारा दिल कहे कि ये गलत है,
तो दुनिया के डर से चुप मत रहो।
अकेले चलने का साहस रखो,
क्योंकि सत्य हमेशा कमज़ोरों के नहीं —
बहादुरों के साथ होता है।”


आज भी जब कोई व्यक्ति
अपने परिवार, समाज या भीड़ से अलग होकर
सत्य की ओर खड़ा होता है,
तो लोग कहते हैं —

“वो विभीषण जैसा है…”

पर वो कोई गाली नहीं,
वो तो एक सम्मान है —
क्योंकि विभीषण ने हमें सिखाया कि
सत्य सबसे बड़ा रिश्ता है। 🌿

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