धर्मराज युधिष्ठिर को नरक के दर्शन करते हुए जाना पड़ा था स्वर्ग लोक

युधिष्ठिर पाण्डु के पांचो पुत्रों में से सबसे बड़े थे| युधिष्ठिर को धर्मराज के नाम से भी जाना जाता है| युधिष्ठिर को उनके मानवीय गणों के कारण ही धर्मराज का दर्जा दिया गया है| युधिष्ठिर सत्यवादिता एवं धार्मिक आचरण के लिए विख्यात हैं| पांचो पांडवों में युधिष्ठिर ही केवल ऐसे थे जो सशरीर स्वर्ग गए थे| परन्तु एक पौराणिक कथा के अनुसार युधिष्ठिर को स्वर्ग जाने से पहले एक बार नरक के दर्शन भी करने पड़े थे|

महाभारत के युद्ध को समाप्त होने के कुछ सालों बाद ही विनाश लीला शुरू होने लगी थी| श्री कृष्ण ने भी मानव देह को त्याग दिया था और वापिस वैकुंठ में विराजमान हो गए थे| श्री कृष्ण के देह त्यागने के बाद पांडवों ने भी परलोक जाने का निश्चय किया| पांडवो ने अपना सारा राजपाट परीक्षित को सौंप दिया और परलोक जाने के उद्देश्य से हिमालय की ओर चल दिए| हिमालय पार करने के बाद जब पांडव स्वर्ग की ओर प्रस्थान करने लगे, तब युधिष्ठिर को छोड़कर सभी एक एक करके मार्ग में ही गिरने लगे| अंत में जब केवल युधिष्ठिर रह गए तो देवराज इंद्र वहां आये और युधिष्ठिर को अपने रथ में बैठा कर स्वर्ग की ओर ले गए|

स्वर्ग पहुँच कर युधिष्ठिर ने देखा कि उनके भाई और द्रोपदी वहां पर नहीं है| अपने भाईयों को वहां ना पाकर युधिष्ठिर चिंतित हो गए| उन्होंने वहां मौजूद देवताओं से कहा कि वह अपने भाईओं के पास जाना चाहते हैं| युधिष्ठिर की बात मान कर देवराज इंद्र ने उन्हें नरक के द्वार पर छोड़ दिया|

नरक के द्वार पर युधिष्ठिर को दर्द भरी आवाजें सुनाई दे रही थी| यह आवाजें जिनकी थी वह युधिष्ठिर को वहीं रुकने के लिए कह रहे थे| युधिष्श्ठिर ने उनसे उनका परिचय पूछा तो उन्होंने भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रोपदी के रूप में अपना परिचय दिया| यह सुनकर युद्धिष्ठिर ने देवदूत से कहा कि तुम देवताओं के पास वापिस लोट जायो| यदि मेरे यहां रहने से मेरे भाईओं और पत्नी को सुख मिलता है तो मैं यही उनके साथ रहूँगा| देवदूत युधिष्ठिर की बात मान कर चला गया और उसने युधिष्ठिर के नरक में रहने के निर्णय के बारे में देवराज इंद्र को बताया|

कुछ समय बाद देवराज इंद्र युधिष्ठिर से मिलने नरक पहुंचे| देवताओं के आगमन से सुंगंधित हवा बहने लगी और मार्ग पर प्रकाश छा गया| देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर से मिलकर उन्हें बताया कि महाभारत के युद्ध के समय उन्होंने छल से गुरु द्रोणाचार्य को उनके पुत्र अश्व्थामा की मृत्यु का यकीन दिलवाया था| इसी कारण तुम्हे छल से नरक के दर्शन करने पड़े| तुम्हारे भाई और पत्नी सभी स्वर्ग में ही तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं|

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