भगवद गीता (ज्ञानविज्ञानयोग- सातवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 30)
अथ सप्तमोऽध्यायः- ज्ञानविज्ञानयोग
( विज्ञान सहित ज्ञान का विषय )
श्रीभगवानुवाच
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव...
भगवद गीता (आत्मसंयमयोग- छठा अध्याय : श्लोक 1 – 47)
अथ षष्ठोऽध्यायः- आत्मसंयमयोग
( कर्मयोग का विषय और योगारूढ़ पुरुष के लक्षण )
श्रीभगवानुवाच
अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।
स सन्न्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- जो पुरुष कर्मफल का...
भगवद गीता (कर्मसंन्यासयोग- पाँचवाँ अध्याय 1 – 29)
अथ पंचमोऽध्यायः- कर्मसंन्यासयोग
( सांख्ययोग और कर्मयोग का निर्णय )
श्रीभगवानुवाच
सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर कर्मयोग की...
भगवद गीता (ज्ञानकर्मसंन्यासयोग – चौथा अध्याय : 1 – 42)
अथ चतुर्थोऽध्यायः- ज्ञानकर्मसंन्यासयोग
( सगुण भगवान का प्रभाव और कर्मयोग का विषय )
श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा था, सूर्य...
भगवद गीता (कर्मयोग – तीसरा अध्याय : श्लोक 1 – 43)
अथ तृतीयोऽध्यायः- कर्मयोग
(ज्ञानयोग और कर्मयोग के अनुसार अनासक्त भाव से नियत कर्म करने की श्रेष्ठता का निरूपण)
अर्जुन उवाच
ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते मता बुद्धिर्जनार्दन ।
तत्किं कर्मणि घोरे मां नियोजयसि केशव ॥
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे जनार्दन! यदि...
भगवद गीता (सांख्ययोग नामक – दूसरा अध्याय : श्लोक 1 – 72)
अथ द्वितीयोऽध्यायः- सांख्ययोग
( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )
संजय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥
भावार्थ : संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों...
भगवद गीता (अर्जुनविषादयोग – पहला अध्याय : श्लोक 1-47)
अथ प्रथमोऽध्यायः- अर्जुनविषादयोग
( दोनों सेनाओं के प्रधान-प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन )
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥
भावार्थ : धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध...
स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करनेवाला महामंत्र ‘वन्दे मातरम्’ और इस का अर्थ
हर देश का एक राष्ट्रीय गीत होता है, उसी तरह हमारे भारत देश का राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम’ है जिसे हमारे देश में बहुत महत्व दिया जाता है । राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम’ बकिमचंद्र...