भगवद गीता (मोक्षसंन्यासयोग- अठारहवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 78)
अथाष्टादशोऽध्यायः- मोक्षसंन्यासयोग
(त्याग का विषय)
अर्जुन उवाच
सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम् ।
त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ॥
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे महाबाहो! हे अन्तर्यामिन्! हे वासुदेव! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को पृथक्-पृथक् जानना चाहता हूँ ॥1॥
श्रीभगवानुवाच
काम्यानां...
भगवद गीता (श्रद्धात्रयविभागयोग- सत्रहवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 28)
अथ सप्तदशोऽध्यायः- श्रद्धात्रयविभागयोग
(श्रद्धा का और शास्त्रविपरीत घोर तप करने वालों का विषय)
अर्जुन उवाच
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः॥
भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! जो मनुष्य शास्त्र विधि को त्यागकर श्रद्धा...
भगवद गीता (दैवासुरसम्पद्विभागयोग- सोलहवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 24)
अथ षोडशोऽध्यायः- दैवासुरसम्पद्विभागयोग
(फलसहित दैवी और आसुरी संपदा का कथन)
श्रीभगवानुवाच
अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- भय का सर्वथा अभाव, अन्तःकरण की पूर्ण निर्मलता, तत्त्वज्ञान के लिए ध्यान योग में निरन्तर दृढ़...
भगवद गीता (पुरुषोत्तमयोग- पंद्रहवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 20)
अथ पञ्चदशोऽध्यायः- पुरुषोत्तमयोग
(संसार वृक्ष का कथन और भगवत्प्राप्ति का उपाय)
श्रीभगवानुवाच
ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- आदिपुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले (आदिपुरुष नारायण वासुदेव भगवान ही...
भगवद गीता (गुणत्रयविभागयोग- चौदहवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 27)
अथ चतुर्दशोऽध्यायः- गुणत्रयविभागयोग
(ज्ञान की महिमा और प्रकृति-पुरुष से जगत् की उत्पत्ति)
श्रीभगवानुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानं मानमुत्तमम् ।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- ज्ञानों में भी अतिउत्तम उस परम ज्ञान को...
भगवद गीता (क्षेत्र-क्षेत्रज्ञविभागयोग- तेरहवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 34)
अथ त्रयोदशोsध्याय: श्रीभगवानुवाच
(ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय)
श्रीभगवानुवाच
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।
एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे अर्जुन! यह शरीर 'क्षेत्र' (जैसे खेत में बोए हुए बीजों का उनके अनुरूप फल...
भगवद गीता (भक्तियोग- बारहवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 20)
अथ द्वादशोऽध्यायः- भक्तियोग
(साकार और निराकार के उपासकों की उत्तमता का निर्णय और भगवत्प्राप्ति के उपाय का विषय)
अर्जुन उवाच
एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ॥
भावार्थ : अर्जुन बोले- जो अनन्य प्रेमी...
भगवद गीता (विश्वरूपदर्शनयोग- ग्यारहवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 55)
अथैकादशोऽध्यायः- विश्वरूपदर्शनयोग
( विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना )
अर्जुन उवाच
मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम् ।
यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥
भावार्थ : अर्जुन बोले- मुझ पर अनुग्रह करने के लिए आपने जो परम गोपनीय अध्यात्म विषयक...
भगवद गीता (विभूतियोग- दसवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 42)
अथ दशमोऽध्याय:- विभूतियोग
( भगवान की विभूति और योगशक्ति का कथन तथा उनके जानने का फल)
श्रीभगवानुवाच
भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥
भावार्थ : श्री भगवान् बोले- हे महाबाहो! फिर भी...
भगवद गीता (राजविद्याराजगुह्ययोग- नौवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 34)
अथ नवमोऽध्यायः- राजविद्याराजगुह्ययोग
( प्रभावसहित ज्ञान का विषय )
श्रीभगवानुवाच
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- तुझ दोषदृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः...
भगवद गीता (अक्षरब्रह्मयोग- आठवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 28)
अथाष्टमोऽध्यायः- अक्षरब्रह्मयोग
( ब्रह्म, अध्यात्म और कर्मादि के विषय में अर्जुन के सात प्रश्न और उनका उत्तर )
अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं पुरुषोत्तम ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥
भावार्थ : अर्जुन ने कहा- हे पुरुषोत्तम!...
भगवद गीता (ज्ञानविज्ञानयोग- सातवाँ अध्याय : श्लोक 1 – 30)
अथ सप्तमोऽध्यायः- ज्ञानविज्ञानयोग
( विज्ञान सहित ज्ञान का विषय )
श्रीभगवानुवाच
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥
भावार्थ : श्री भगवान बोले- हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव...