ब्राह्मण होते हुए भी क्यों था परशुराम का स्वभाव क्षत्रियों जैसा

परशुराम जी का जन्म हिन्दू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुकल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था| इनका जन्म ऋषि जमदग्नि के घर हुआ| परशुराम जी की माता का नाम रेणुका था| परशुराम जी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है| परशुराम जी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है| हनुमान जी की तरह परशुराम जी को अमर माना जाता है| ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम जी आज भी कहीं तपस्या में लीन हैं|

कन्नौज में गाधि नाम के राजा का राज था| उनकी पुत्री सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋचिक के साथ हुआ| विवाह के पश्चात् सत्यवती ने अपने ससुर ऋषि भृगु से अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र का वरदान माँगा| सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना|

फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग – अलग सेवन कर लेना| सत्यवती की माँ ने चालाकी से अपना और अपनी पुत्री का चरु बदल दिया| इस तरह सत्यवती ने अपनी माँ को मिले चरु का सेवन कर लिया| जब यह बात भृगु ऋषि को ज्ञात हुई तो वह सत्यवती के पास गए और उन्होंने सत्यवती को बताया कि तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है| इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगी|

सत्यवती ने ऋषि भृगु से प्रार्थना की कि मेरा पुत्र ब्राह्मण गुणों वाला हो भले ही मेरे पौत्र में क्षत्रिय जैसे गुण हों| ऋषि भृगु ने अपनी पुत्रवधु की प्रार्थना स्वीकार कर उसे आशीर्वाद दे दिया| कुछ समय बाद सत्यवती ने ऋषि जमदग्नि को जन्म दिया| जो कि बहुत तेजस्वी थे| जब ऋषि जमदग्नि विवाह की आयु के हुए तो उनका विवाह रेणुका से सम्पन्न करवाया गया| विवाह के पश्चात् ऋषि जमदग्नि को रेणुका से पांच पुत्र हुए – रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस और परशुराम| इन पाँचों पुत्रों में से परशुराम जी का स्वाभाव क्षत्रियों वाला था|

परशुराम जी धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार व प्रसार करना चाहते थे| वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे| परशुराम जी बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे| उन्होंने अधिकांश विद्याएँ अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता की शिक्षाओं से सीख ली थीं| उनमें पशु – पक्षियों की भाषा समझने की भी कला थी|

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