ऐसे किया था श्री राम ने कैकयी का मार्गदर्शन

श्री राम के वनवास से लौटने के बाद कैकई श्री राम के पास गयी तथा अपने अपराध की क्षमा मांगने लगी। कैकयी ने श्री राम से कहा कि मैंने तुम्हे वनवास भेज कर बहुत बड़ा अपराध किया था। मुझे क्षमा कर दो। तुम कृपालु हो, मुझे अपनी शरण में लो। मुझे कोई मार्ग दिखायो जिस से मेरा अज्ञान नष्ट हो तथा मेरा उद्धार हो जाए।

यह सुनकर श्री राम बोले कि माता, आपने कोई अपराध नही किया है। उस समय देवी सरस्वती ने आपकी वाणी में बैठकर वह वर मंगवाया था। आपको लेकर मेरे मन में कोई नाराजगी नही है।

कुछ देर चुप रहने के बाद श्री राम बोले कि लक्ष्मण कल आपको कहीं लेजाकर उपदेश दिल देंगे। इसके बाद कैकयी माता वहां से विदा हो गयी। कैकयी माता को विदा करने के बाद श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि कल माता को नगर के बाहर सरयू तट पर वहां ले जाना, जहां भेड़ें रहती हैं। भेड़ के मुंह से थोड़ा उपदेश वाक्य सुनवा कर वापस ले आना।

यह सुनकर लक्ष्मण सोच में पड़ गए कि भेड़ें भला क्या उपदेश देंगी? अगले दिन लक्ष्मण कैकई को लेकर वहां पहुंचे और कहा, भ्राता राम ने आपको भेड़ों से उपदेश सुनने के लिए कहा है। कैकई को लगा कि राम ने उनका उपहास किया है। भेड़ें भला कैसे उपदेश दे सकती हैं। उनके मन में तरह तरह के विचार आने लगे। इतने में वहां भेड़ों का एक झुंड आकर मे-मे करने लगा। फिर कैकयी के मन में विचार आया कि भेड़ों के ऐसे मिमियाने में जरूर कोई गूढ़ भाव छिपा है। यह सोचकर उन्होंने आँखें बन्द कर ली।

थोड़ी ही देर में उन्हें ज्ञात हो गया कि श्री राम उन्हें क्या समझाना चाहते हैं। उन्होंने लक्ष्मण से वापिस चलने को कहा और बताया कि उन्हें अब ज्ञान हो गया है। राजभवन पहुंचकर कैकई ने राम से कहा, तुम्हारी कृपा से मुझे भेड़ों के जरिये ज्ञान प्राप्त हो गया है। भेड़ जो मे-मे कर रही थी, यह एक तरह की लिप्सा है। मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मेरी संपत्ति। यह मे ही अनर्थ का मूल है। भेड़ों ने मुझे ज्ञान दिया कि ममता त्याग दो। कल्याण चाहिए तो संसार में जो आसक्ति है, उसे छोड़ना चाहिए। जब मैं शब्द छूटता है, तभी अपने भीतर का परमात्मा जागता है।

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