क्यों किया बर्बरीक ने अपने बाणों से पीपल के पत्तों में छेद

क्या आपको कभी सुनने को मिला है बर्बरीक के बारे में कि वह कौन था और उसकी   प्रचलित कथा क्या है? तो आइए जानते है इस प्रश्न का उत्तर|

बर्बरीक, जिसे महाभारत में एक महान योद्धा का खिताब मिला, घटोत्कच और अहिलावती का पुत्र था| यह एक ऐसा मनुष्य था जो हमेशा उस दल की तरफ से लड़ता था जो कमज़ोर होता था| युद्ध कला का अध्यन्न बर्बरीक ने अपनी माँ से सीखा था|

आइए जानते है बर्बरीक से जुड़ी प्रचलित कथा के बारे में-

यह महाभारत युद्ध के शुरुआत के समय की कहानी है, सबको यह पता होगा कि युद्ध में श्री कृष्ण ने पाण्डवों का साथ देने का निश्चय किया था क्योंकि वे धर्म के लिए लड़ रहे थे| इससे यह ज्ञात हुआ कि बेशक कौरवों की सेना अधिक शक्तिशाली थी परन्तु विजय प्राप्त पाण्डवों को ही होनी थी|

जैसे हमने ऊपर भी पढ़ा कि बर्बरीक अपनी माँ को दिए वचन के कारण हमेशा युद्ध में कमज़ोर दल की ओर से लड़ता है, महाभारत के युद्ध में भी उसने वैसा ही किया   उसने कौरव सेना की तरफ से युद्ध करने की सोची| इसी कारण बर्बरीक ने माँ दुर्गा की कठिन तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया और उनसे 3 ऐसे बाण प्राप्त किए जिसके प्रहार से कोई न बच पाए और वह अपने घोड़े पर सवार होकर कुरुक्षेत्र भूमि में युद्ध के लिए निकल पड़ा|

परन्तु भगवान श्री कृष्ण से कुछ नहीं छुपा था उन्होंने रास्ते में ब्राह्मण रूप धारण कर बर्बरीक को रोका, फिर उस पर हँसने लगे और बोले सिर्फ 3 बाणों से कैसे युद्ध लड़ा जा सकता है? ब्राह्मण की बातें सुनने के पश्चात बर्बरीक बोला यह कोई साधारण बाण नहीं है, एक ही बाण से समस्त शत्रु दल को हराया जा सकता है| शत्रुओं का अंत करने के बाद यह बाण अपने स्थान पर लौट आता है| इसका प्रमाण दिखाओं तो मैं तुम्हारी कही गई बात मान जाऊंगा| कृष्ण जी बोले कि जिस पीपल के पेड़ के नीचे हम खड़े है उसके पत्तों में इस बाण द्वारा छेद करों|

बर्बरीक ने उनकी बात का मान रखते हुए भगवान का ध्यान करके बाण चलाया| क्षण भर में सारे पत्तों में छेद हो गया और श्री कृष्ण के पैरों के नीचे दबे हुए पत्ते के कारण तीर उनके आस पास घुमने लग गया|

श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वे किसकी ओर से युद्ध लड़ेगा, तो उसने अपनी माँ का वचन को बताते हुए बोला की जो कमज़ोर सेना होगी| अब युद्ध में धर्म के लिए जीत पाण्डवों की होनी चाहिए परन्तु बर्बरीक के वचन के कारण अधर्म यानि कौरवों की जीत होगी| इस परिस्थिति को देखते हुए ब्राह्मण रूप धारण किए कृष्ण ने बर्बरीक से दान में उसका सिर माँगा| अब बर्बरीक ने सोचा की कभी भी कोई ब्राह्मण दान में किसी का सिर नहीं माँग सकता| तो उसने बोला कि आप कोन है? कृप्या अपने वास्तविक रूप में आए| भगवान कृष्ण के मुख से सब कुछ सच सुनने के बाद बर्बरीक ने उनके भव्य रूप के दर्शन कराने की प्रार्थना की और बोला की वह अपना शीश की बलि देने को त्यार है| परन्तु उसकी इच्छा थी कि वह अंत तक पूरा महाभारत युद्ध को देखें| उसकी इच्छा पूर्ण करने के लिए कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को धड़ से अलग करके युद्धभूमि के समीप एक पहाड़ पर रख दिया जिससे उसने अंत तक युद्ध देखा|

आज भी महाभारत युद्ध में पाण्डवों की जीत में सबसे बड़े योगदान की बात करें तो वह था बर्बरीक का| इसी कहानी आधार हरयाणा के हिसार जिले में यह स्थान वीर बरबरान के नाम से जाना जाता है| हैरानी की बात तो ये है कि वह पीपल का वृक्ष अभी भी वहां मौजुद है, उसके पतों में अभी भी छेद है| उस पेड़ पर जितने भी नए पत्ते पैदा होते है सबमे छेद होता है|

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