युधिष्ठिर के यज्ञ से श्रेष्ठ था ब्राह्मण का यज्ञ

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने एक यज्ञ करवाया। यज्ञ पूर्ण होने के बाद ऋषियों की सभा एकत्रित हुई। सभा में सभी यज्ञ की चर्चा करने लगे। सभी इस यज्ञ की तारीफों के पुल बाँध रहे थे। एक ऋषि ने कहा कि यह यज्ञ सबसे श्रेष्ठ था। क्योंकि इसमें नर-नारायण अर्जुन और श्री कृष्ण जूठी पत्तल स्वयं समेट रहे थे।

अभी ऋषि मुनि आपस में बात ही कर रहे थे कि वहां एक नेवला आ गया। जिसका आधा शरीर सोने का था। वह मनुष्य की भांति बोल सकता था। उसने युधिष्ठिर के यज्ञ की बात सुनकर ऋषि मुनियों से कहा कि यज्ञ तो कुरुक्षेत्र में एक ब्राह्मण ने किया था। उस यज्ञ के पुण्य प्रभाव से देवलोक से तत्काल दिव्य विमान आया और उसमें बैठकर ब्राह्मण परिवार स्वर्ग चला गया।

सभी ऋषि मुनि नेवले की बात ध्यान से सुन रहे थे। नेवले ने उस ब्राह्मण के यज्ञ के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र में एक ब्राह्मण, उसकी स्त्री, पुत्र और पुत्रवधू रहते थे। वे काफी दिनों से उपवास कर रहे थे। क्योंकि उन्हें बहुत दिनों से अन्न नहीं मिला था।

एक दिन ब्राह्मण कहीं से सेर-दो सेर अन्न बीनकर लाया और यथाविधि बनाकर तैयार किया। जैसे ही वे लोग खाने लगे, वहां एक अतिथि आ पहुंचा। उसे भूख लगी हुई थी। इसलिए उसने ब्राह्मण से भोजन मांगा। ब्राह्मण ने उसे अपना हिस्सा दे दिया। परन्तु फिर भी उस अतिथि का पेट नहीं भरा। इसलिए अब ब्राह्मण की स्त्री और पुत्र ने भी अपना-अपना हिस्सा दे दिया। अंत में जब पुत्रवधू अपने हिस्से का भोजन देने आई तो ब्राह्मण ने उसे कहा कि तुम बहुत निर्बल हो। इसलिए अपना भोजन स्वयं ग्रहण करो।

इस पर पुत्रवधू ने कहा – पिताजी! शरीर नष्ट भी हो जाए, तो फिर प्राप्त हो जाएगा। किंतु धर्म जाकर फिर वापस नहीं लौटेगा। यह सुनकर ब्राह्मण के आनंद का ठिकाना नहीं रहा।

उसी समय एक विमान आया और पुरे परिवार को स्वर्ग ले गया। नेवले ने कहा कि मैं उस समय उस जगह लोट भर गया था, जिससे मेरा आधा शरीर सोने का हो गया। बाकी आधा शरीर सोने का करने के लिए मैं यहां आया, पर वैसा नहीं हुआ। क्योंकि ब्राह्मण का यज्ञ इससे बढ़कर था। यह सुन सब चुप हो गए। सच है, परमार्थ से बड़ा कोई यज्ञ नहीं।

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *