प्रभु श्री राम द्वारा किये गए अश्वमेघ यज्ञ का घोडा कौन था

प्रभु श्री राम से जुडी कई कथाएं हैं इन्ही में से एक कथा है उनके द्वारा किये गए अश्वमेघ यज्ञ के बारे में भी है| दरअसल अश्वमेघ यज्ञ में होता यह था की जो भी राजा चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहता था वह अपनी अर्धांगिनी के साथ मिल कर यज्ञ करता था|

यज्ञ के बाद एक अश्व जिसके गले में एक तख्ती लटकी होती थी जिसपर लिखा होता था यह अश्व अमुक राजा का है| यह जिस भी राज्य से गुजरेगा वह इस राजा की संपत्ति हो जायेगी अगर कोई इसे पकड़ता है तो उसे इस अश्व के मालिक से युद्ध करना होगा|

प्रभु श्री राम को भी चक्रवर्ती सम्राट बनाने के लिए उनके छोटे भ्रातः लक्ष्मण ने उन्हें अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी| श्री राम अपने छोटे भाई का कहा ठुकरा ना सके और यज्ञ की तैयारी आरम्भ कर दी| परन्तु सबसे बड़ी समस्या यह थी की बिना अर्धांगिनी के यज्ञ में बैठना अनुचित था और प्रभु श्री राम ने अपनी पत्नी देवी सीता का त्याग कर दिया था|

सभी इस बात को लेकर चिंतित थे की बिना देवी सीता के यह यज्ञ कैसे पूर्ण होगा तभी यज्ञ के पुरोहित ने एक सरल उपाय सुझाया की देवी सीता की जगह अगर उनकी सोने की मूर्ती बना कर बिठा दी जाए तो यज्ञ किया जा सकता है|

उनका यह उपाय सबको भा गया परन्तु लक्ष्मण ने कहा की भाभी की जगह कोई नहीं ले सकता मैं उन्हें अवश्य मना कर वापस ले आऊंगा| जब से प्रभु श्री राम ने देवी सीता का त्याग किया था तब से उन्होंने इसे ही अपना भविष्य मान कर जंगल में समय व्यतीत करना शुरू कर दिया था|

जब लक्ष्मण उनके पास पहुंचे तो सीता को देखते ही उनकी आँखों से आंसू बहने लगे और उन्होंने देवी सीता को साथ चलने को कहा| बहुत विनती करने पर देवी सीता उनके साथ वापस अयोध्या आ गयी| आते ही श्री राम की माता कौशल्या ने उन्हें ह्रदय से लगा लिया और सोने की मूर्ती हटा कर देवी सीता श्री राम के साथ यज्ञ में सम्मिलित हो गयी|

यज्ञ समाप्त होने पर दोनों ने घोड़े को स्पर्श किया जिससे घोडा अपने वास्तविक रूप में आ गया| तब श्री राम ने पुछा की आप कौन हैं इसपर उसने उत्तर दिया की प्रभु सब कुछ जानते हुए भी आप मुझसे सुनना चाहते हैं|

पूर्व जन्म में मैं एक ब्राम्हण था एक दिन की बात है मैं सरयू के तट पर स्नान करके पूजा कर रहा था तभी मुझे महसूस हुआ की लोग मेरी ओर ध्यान दे रहे हैं|

मेरे मन में लालच आ गया और मैंने उन्हें ठगा ठीक उसी समय महर्षि दुर्वाषा भी वहाँ आये हुए थे| और जैसा की सभी जानते हैं की उनका स्वभाव थोडा उग्र है मेरे दंभ की सच्चाई उन्हें पता थी और साथ ही मैंने उठ कर उनका अभिनन्दन भी नहीं किया था|

उन्होंने मुझे श्राप दे दिया की तू मनुष्य हो कर भी जानवरों सा व्यवहार कर रहा है अतः तू अगले जन्म में जानवर बनेगा| जब मुझे अपनी भूल का एहसास हुआ तो मैंने उनके चरणों को पकड़ लिया और क्षमा मांगने लगा मेरी विनती सुनकर उन्होंने कहा की अगले जन्म में तुम अश्व बनोगे और प्रभु राम और देवी सीता के स्पर्श से तुम वापस अपने रूप में आ जाओगे|

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