आखिर क्यों शिव को अपनी जान बचाने के लिए अपने भक्त से भागना पड़ा

भगवान् शिव को लोग अनेकों नामों से जानते है परन्तु ज्यादातर लोग उन्हें भोलेनाथ के नाम से ही पुकारते हैं| और सत्य भी है की भगवान् शिव बड़े ही भोले हैं उन्होंने अपने भक्तों में कभी भी भेद भाव नहीं किया जिसने भी सच्चे मन से उन्हें पुकारा प्रभु दौड़े चले आये| चाहे वो मनुष्य हो देव हो या फिर राक्षस और इसी बात का राक्षसों ने सदा ही लाभ उठाने की कोशिश की है| भगवान् शिव के इस भोलेपन की वजह से कुछ ऐसे भी वाकये हुए है की सुन कर हंसी आती है|

बहुत समय पहले भस्मासुर नामक एक राक्षस था जो सारे ब्रम्हाण्ड पर राज करना चाहता था| उसे भोलेनाथ के भोलेपन के बारे में पता चला उसने सोचा क्यों न इनकी तपस्या की जाय जल्द ही ये प्रसन्न होकर मनचाहा वर दे देंगे| ऐसा निश्चय कर उसने भगवन शिव की कठिन साधना आरम्भ कर दी और पुरे मनोयोग से भगवान् शिव को पुकारना शुरू कर दिया| उसकी कठोर साधना और करूँ पुकार सुन कर कैलाश भी हिलने लगा तो भगवान् शिव का ध्यान उस ओर गया उन्होंने सोचा की आखिर कौन है जो मुझे सच्चे मन से पुकार रहा है|

शिव ने देखा की भस्मासुर कठोर तप में लीन है शिव जी ने भस्मासुर को आवाज़ दी पुत्र आँखें खोलो और बताओ आखिर क्यों मुझे पुकार रहे हो| भस्मासुर ने आँखें खोली और सामने भगवन को देखकर गदगद हो गया और उनके चरणों में लेट गया और कहा प्रभु अगर आप मुझसे प्रसन्न है तो मुझे अमरता का वरदान दीजिये| भगवान् ने कहा पुत्र ये तो असंभव है जिसने धरती पर जन्म लिया है उसकी मृत्यु भी उसी समय तय हो चुकी है कोई और वर मांगो जो की प्रकृति के नियम के अंतर्गत हो|

भस्मासुर बहुत देर तक अपनी मांग पर अड़ा रहा परन्तु शिव नहीं माने हारकर उसने अपनी मांग बदल ली और कहा की मैं जिसके सर पर हाँथ रखूँ वो जलकर भस्म हो जाए| इसपर शिव ने कहा ठीक है तुम जिस किसी के सर पर हाथ रखोगे वो उसी क्षण राख में बदल जायेगा| भस्मासुर को यकीं नहीं हुआ की शिव ने उसे सच में ये वरदान दे दिया है अतः उसने सबसे पहले शिव के सर पर हाथ रख कर आजमाने की सोची| परन्तु शिव भी उसके मन की बात समझ चुके थे और अपना दिया हुआ वरदान वापस नहीं ले सकते थे इसलिए उन्हें वहाँ से भागना पड़ा|

उसके बाद उन्हें भगवान् विष्णु का ध्यान आया उन्होंने चक्रधारी का स्मरण किया भगवान् विष्णु के आते ही उन्होंने उन्हें सारी बात बताई और छुटकारे का उपाय करने को कहा| इसपर विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और भस्मासुर के सम्मुख पहुँच गए| भस्मासुर उनकी सुन्दरता देख कर मोहित हो गया और उनसे पूछा क्या तुम मुझसे विवाह करोगी तो मोहिनी रूप धारण किये हुए विष्णु जी ने कहा मैं नर्तकी हूँ और नर्तक से ही विवाह करुँगी| इसपर उसने कहा अगर तुम मुझे सिखाओ तो मैं अच्छा नृत्य कर सकता हूँ मोहिनी ने कहा ठीक है जैसे मैं करती हूँ वैसे करो| भस्मासुर ने मोहिनी का अनुकरण करना शुरू कर दिया और इसी क्रम में उसने अपना हाथ अपने ही सर पर रख लिया और शिव के वरदान के कारण खुद ही जलकर भस्म हो गया|

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