क्या अर्जुन और श्री कृष्ण के बीच भी युद्ध हुआ था?

युद्ध में जो कृष्ण अर्जुन के सारथि बन कर उसके साथ हमेशा खड़े हुए, क्या उन्ही श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय अर्जुन के साथ युद्ध किया था? जिस अर्जुन ने श्रीकृष्ण से महाभारत के दौरान गीता का ज्ञान लिया, वही अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ युद्ध करने को कैसे तैयार हुए?

आइए जानतें हैं पूरी कहानी:-

एक बार ऋषि गालव ध्यान पर बैठे हुए थे तभी आकाश से जा रहे चित्रसेन की थूक ऋषि पर गिरी| गालव ऋषि बहुत क्रोधित हुए परन्तु वे उसे श्राप न दे सके क्योंकि इस से उनका तप भंग हो सकता था| वे श्रीकृष्ण के पास गए और सारी कहानी उनके सामने रखी| कृष्ण ने चित्रसेन को 24 घंटे में मारने की प्रतिज्ञा ली|

नारद जी को जब इस बात का पता चला तब वे सीधा चित्रसेन के पास पहुंचे और उसे संकेत दे दिया कि उसकी मृत्यु समीप है| नारद जी ने चित्रसेन को बताया की श्रीकृष्ण ने उसे मरने की प्रतिज्ञा ली है| वह ये सुनकर घबरा गया और मदद की गुहार लगाने लगा|

तब नारद जी ने इस आपदा से निकलने का रास्ता खोजा, जिसके अंतर्गत चित्रसेन को यमुना तट पर जाना था और आधी रात को एक स्त्री के आने पर ज़ोर-ज़ोर से रोना था| परन्तु चित्रसेन को एक बात का ध्यान रखना था कि जब तक वह स्त्री कष्ट दूर करने की प्रतिज्ञा नहीं ले लेती तब तक उसे कारण नहीं बताना है|

नारद जी फिर इंद्रप्रस्थ जा पहुंचे| वहां जा कर उन्होंने सुभद्रा से कहा कि अगर आज आधी रात को यमुना में स्नान किया तो पुण्य की प्राप्ती होगी| जब रात्रि में सुभद्रा अपनी सखियों के साथ यमुना किनारे पहुंची तो किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी| वे तीनों जल्दी से जहाँ से आवाज़ आ रही थी उस तरफ को गयीं तो देखा चित्रसेन विलाप कर रहा है|

कई बार पूछने के बावजूद चित्रसेन ने कुछ नहीं बताया| चित्रसेन अर्जुन का मित्र था, यह सोच कर सुभद्रा ने उससे वादा किया कि वह उसकी दुविधा से उसे अवश्य निकालेगी| इसके बाद जब चित्रसेन ने सारी कहानी सुभद्रा को बताई तो वह घबरा गई क्योंकि एक तरफ श्रीकृष्ण की प्रतिज्ञा थी और दूसरी तरफ अपनी प्रतिज्ञा|

सुभद्रा चित्रसेन को लेकर इंद्रप्रस्थ आ गयी और अर्जुन को सारी कहानी बताई| अर्जुन ने बहुत सोच-विचार कर सुभद्रा को आश्वासन दिया की उसकी प्रतिज्ञा ज़रूर पूरी होगी| नारद जी ने अर्जुन के इस फैसले पर प्रश्न किया तो अर्जुन ने उत्तर में ये कहा कि, ‘मैंने आज तक जितना भी ज्ञान, विद्या, और बल प्राप्त किया है, ये केवल श्रीकृष्ण का ही दिया हुआ है| उनका सिखाया हुआ धर्म मुझे अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने को कहता है तो मैं अवश्य प्रतिज्ञा पूरी करूंगा| बाकि सब उनके हाथ में हैं|’

यह सब नारद जी ने श्रीकृष्ण को जाकर बताया और युद्ध की तैयारी आरम्भ हो गयी| अर्जुन और कृष्ण के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया| श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से अर्जुन की ओर प्रहार किया और अर्जुन ने पाशुपतास्त्र छोड़ दिया| उस वक़्त अर्जुन ने महादेव का ध्यान लगाया और उन्होंने दोनों शस्त्रों को मनाया|

भगवान शिव फिर श्रीकृष्ण के पास गए और कहा- राम सदा सेवक रुचि राखी। वेद, पुरान, लोक सब राखी। अर्थात भगवान तो अपने भक्तों की बात को आगे रख कर अपनी प्रतिज्ञा को भूल जाते हैं| श्रीकृष्ण ने ये सुन कर युद्ध पर विराम लगाया और अपनी प्रतिज्ञा त्याग दी|

यह देख ऋषि गालव क्रोधित हो गए और कहा कि मैं अभी इसी समय कृष्ण, अर्जुन, सुभद्रा और चित्रसेन को भस्म कर दूंगा| ऋषि ने अपने हाथ में जल लिया, इतने में सुभद्रा बोली, “मैं यदि कृष्ण की भक्त हूँ और अर्जुन के प्रति मेरा पत्नीधर्म पूर्ण है तो यह जल ऋषि के हाथ से पृथ्वी पर नहीं गिरेगा|” ऋषि यह देख शर्मिंदा हुए और सभी से क्षमा मांगी|

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