गणेश जी की पूजा करते समय तुलसी क्यों नहीं अर्पित की जाती

देवों के देव महादेव शिव शंकर और देवी पार्वती के छोटे पुत्र भगवान गणेश को कौन नहीं जानता| परन्तु शायद ही आपको उनसे जुड़े एक रहष्य के बारे में पता होगा की भगवान गणेश ने पहले आजीवन ब्रम्हचारी रहने का प्रण किया था| ये जानकार आप सोच रहे होंगे की अगर ऐसा है तो फिर रिद्धि सिद्धि कौन हैं| और अगर उनका विवाह रिद्धि सिद्धि से हुआ था तो क्या वह अपने वचन पर अडिग नहीं रह पाए?

परन्तु यह सत्य नहीं है इसके पीछे भी एक बड़ा ही दिलचस्प वाक्या है जिसे जान कर आप दंग रह जायेंगे तो आइये जानते है भगवान् गणेश के जीवन के इस छुपे पहलु के बारे में| जब भगवान शिव द्वारा क्रोधवश उनका शीश काट दिया गया था तब महादेव को उनके देवी पार्वती के पुत्र होने के बारे में पता लगा| यह जान कर उन्हें अपने किये पर बड़ा पछतावा हुआ और उन्होंने अपने वाहन नंदी बैल को जा कर किसी बालक का शीश काट कर लाने को कहा|

उनकी आज्ञा पाकर नंदी किसी नए जन्मे बालक की तलाश में निकल पड़े उनकी तलाश एक हाथी के बच्चे पर जाकर ख़त्म हुयी| आनन् फानन में वो हाथी के बच्चे का सर काट कर ले आये और भगवान शिव ने उस शीश को गणेश जी के धड से जोड़ दिया और उन्हें जीवित कर दिया|

नया जीवन पाकर गणेश भगवान ने निर्णय किया की वो आजीवन ब्रम्हचारी ही रहेंगे क्योंकि कोई भी स्त्री उनकी सूरत देखकर उनसे विवाह करने को तैयार नहीं होगी| भगवान गणेश अपनी इस मनोकामना को लेकर जंगल में चले गए और घोर तपस्या में लीन हो गए| जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था वैसे वैसे उनके तप के प्रभाव से उनका तेज बढ़ता जा रहा था| धीरे धीरे उनका तेज इतना बढ़ गया की मानो प्रतीत होता था की जंगल में किसी दुसरे सूर्य का उदय हो गया हो|

उसी तेज प्रकाश को देख कर उत्सुकतावश तुलसी उनके समीप पहुँच गयी और उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रख दिया| परन्तु गणेश जी ने आजीवन ब्रम्हचारी रहने का प्रण कर रखा था अतः उन्होंने तुलसी की नम्रतापूर्वक मना कर दिया| उनकी बात सुनते ही तुलसी का क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया और उसने गजानन को श्राप दे दिया की उनका विवाह एक नहीं बल्कि दो स्त्रियों से होगा| अब श्राप मिलने की वजह से उन्हें दो स्त्रियों से विवाह करना ही था|

परन्तु तुलसी के इस कृत्य से कुपित हो कर गणेश जी ने उसे पौधे में बदल जाने का श्राप दिया साथ ही उसके पत्ते को अपनी पूजा से बहिस्कृत भी कर दिया| इतने पर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तो उन्होंने तुलसी को अत्यंत भयावह पीड़ा सहने का भी श्राप दिया| जब तुलसी के पौधे में मंजर लगते हैं तब तुलसी को अत्यंत पीड़ा का अनुभव होता है और अगर समय रहते उन्हें तोडा न जाए तो वह तुलसी को पौधे को सुखा देता है|

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