सरस्वती माता का पूजन बसंत पंचमी पर इस तरह से किया जाता है

देवी भागवत के अनुसार देवी सरस्वती की पूजा सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने की थी। मान्यतानुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि जिसे वसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है, के दिन विद्यारंभ के शुभ अवसर पर देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए।

प्रात: काल समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के पश्चात मां भगवती सरस्वती की आराधना का प्रण लेना चाहिए। इसके बाद दिन के समय यानि पूर्वाह्नकाल में स्नान आदि के बाद भगवान गणेश जी का ध्यान करना चाहिए।

स्कंद पुराण के अनुसार सफेद पुष्प, चन्दन, श्वेत वस्त्रादि से देवी सरस्वती जी की पूजा करनी चाहिए। देवी सरस्वती की पूजा में श्वेत वर्ण का अहम स्थान होता है। इनको चढ़ाने वाले नैवेद्य व वस्त्र अधिकतर श्वेत वर्ण के ही होने चाहिए। पूजा के उपरांत देवी को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए।

शिक्षा प्रांरभ करने के लिए यह दिन श्रेष्ठ है। सरस्वती माता की प्रसन्नाता के लिए पीले फूल चढ़ाना चाहिए।

सरस्वती जी की पूजा के लिए अष्टाक्षर मूल मंत्र “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा” परम श्रेष्ठतम और उपयोगी है।

माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पचंमी के दिन तुम्हारी ही आराधना की जाएगी। इस कारण हिंदू धर्म में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा होती है।

त्रिविद्या के रूप में भगवती सरस्वती का ब्रह्मा के मुख से प्रादुर्भाव हुआ। सृष्टि के सृजन के समय ब्रह्मा के हृदय में पूर्व कल्प की स्मृति जाग्रत करने के लिए अधिष्ठात्री देवी सरस्वती अपने अंगों सहित वेद के रूप में उनके मुख से प्रकट हुईं।

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद ब्रह्मा के श्रीमुख से उच्चरित हुए, भारतीय ज्ञान-विज्ञान का आधार कहे जाते हैं। भगवती सरस्वती मनुष्य के शरीर में कंठ और जिह्वा में निवास करती हैं, जो वाणी और स्वाद का स्वरूप हैं, परंतु मूल रूप से उनका स्थान मनुष्य शरीर में आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र में स्थित है, जो मस्तिष्क के केंद्रीय बिन्दु से निकल कर प्रकट होती हैं।

सर्वप्रथम ऋग्वेद में सरस्वती पवित्र नदी और क्रमश: नदी देवता और वाग्देवता के रूप में वर्णित हुई हैं। सरस्वती देवी के रूप में ऋग्वेद में कल्पित की गई हैं, जो पवित्रता, शुद्धि, समृद्धि और शक्ति प्रदान करती हैं। उनका संबंध अन्य देवताओं- पूषा, इंद्र और मरुत से बतलाया गया है। कई सूत्रों में सरस्वती का संबंध यज्ञीय देवता इंद्र और भारती से जोड़ा गया है। बाद में भारती सरस्वती से अभिन्न मान ली गईं।

हर्ष, उल्लास, उमंग और सरस्वती साधना का श्रेष्ठतम पर्व वसंत पंचमी है। परम्परागत रूप से सरस्वती साधना सम्पन्न करना हो तो प्रात: काल नित्य क्रिया से निवृत्त हो पीले वस्त्र धारण कर आसन ग्रहण करें। पूजा सामग्री में पीले पुष्प, पीला नैवेद्य, पीले फल आदि प्रमुखता से रखें।

सबसे पहले पीले-पीले वस्त्र या ताम्र पात्र पर सरस्वती यंत्र कुमकुम, हल्दी और कर्पूर तथा गुलाब जल का मिश्रण कर अनार की कलम से अंकित कर चावल की ढेरी स्थापित करें।

इसके साथ ही मां सरस्वती की प्रतिमा या चित्र भी रखें। सुगंधित धूप और दीपक प्रज्ज्वलित कर एकाग्रतापूर्वक भगवती सरस्वती का स्मरण कर पंचोकार विधि से ‘ऊं ऐं सरस्वती दैव्यै अर्पणमस्तु’ मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजन सामग्री अर्पित करें।

इसके बाद भगवती सरस्वती का बीज मंत्र ‘ऊं वीणावादिन्यै ऐं नम:’ की माला जप करें। जप समाप्त करने के बाद अग्नि में 108 आहुतियां शुद्ध गाय के घी में शहद और कपूर का मिश्रण कर दें तथा पंचदीप से आरती कर प्रसाद ग्रहण करें। इस अवसर पर बच्चों की जिह्वा पर केसर से ‘ऐं’ बीज लिखना चाहिए। इससे बच्चों पर मां सरस्वती की असीम कृपा बनी रहती है।

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