ऐसे हुई भीम की हनुमान जी से मुलाकात

कौरवों के साथ चौसर का खेल खेलते हुए एक मुकाबले में हार जाने से पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला था| वनवास मिलने के बाद सभी पांडवों ने धृतराष्ट्र की आज्ञा ली और वन की और प्रस्थान किया| धृतराष्ट्र को अपने पुत्रों द्वारा किये हुए कार्य पर बहुत दुःख हुआ|

इसी दौरान जब श्री कृष्ण को पता चला कि द्रोपदी समेत सभी पांडव वनवास जा रहे हैं तो वह तुरंत द्रोपदी के भाई दृष्टध्युमं के साथ पांडवों से मिलने पहुंचे| श्री कृष्ण और अपने भाई को देखकर द्रोपदी की आँखों में आंसू आ गए| श्री कृष्ण ने द्रोपदी को हिम्मत देते हुए कहा कि तुम्हारा अपमान करने वाले लोगों की लाशे युद्ध के मैदान में खून से लथपथ मिलेंगी, मै तुम्हें वचन देता हूँ कि मै सदैव पांडवों की सहायता करूंगा| कुछ देर रुकने के बाद श्री कृष्ण वहां से चले गए|

वनवास आरम्भ होने के कुछ दिन बाद द्रोपदी के आश्रम के बाहर एक सुंदर फूल उड़ता हुआ आया| उस फूल की सुंदरता को देखकर द्रोपदी ने भीमसेन से ऐसे और फूल लाने को कहा| अपनी पत्नी की यह इच्छा पूरी करने के लिए भीम वन में यह फूल ढूंढने के उद्देश्य से निकल पड़ा| उस फूल की खोज में भीम एक बगीचे में पहुंचा| उस बगीचे के अंदर जाने के रास्ते पर एक वानर रास्ता रोके खड़ा था| भीम ने वानर को रास्ते में से हटने को कहा| परन्तु वानर ने हटने से मना कर दिया|

भीम के बार बार सताने पर वानर ने कहा कि मैं बूढ़ा हो चला हूँ, मैं तो अपनी जगह से हिलने में भी असमर्थ हूँ| यदि तुम अंदर जाना चाहते हो तो मेरे उपर से लांघ कर चले जाओ| भीम ने कहा कि किसी जानवर को लांघना मै अनुचित मानता हूँ अन्यथा मै कब का लांघ गया होता| वानर ने कहा कि भाई मुझे ये तो बता दो कि वो हनुमान कौन था जो समुद्र को लांघ कर लंका चला गया था|

यह सुनकर भीम को गुस्सा आ गया और भीम क्रोधित होकर कहने लगा कि तुम जानते हो तुम किसके लिए बोल रहे हो, तुम महावीर हनुमान को नहीं जानते, यहाँ से हट जाओ अन्यथा मुझ्से बुरा कोई नही होगा|

वानर ने भीम की बात का जवाब देते हुए करुण स्वर में कहा कि ठीक है शूरवीर, इतना क्रोधित न हो, अगर तुम्हें मुझ पर से लांघना अनुचित लगता है तो मेरी पुंछ को हटाकर एक तरफ कर दो और निकल जाओ| भीम ने वानर की पूंछ पकड़ी और उसे उठाने की बहुत कोशिश की| परन्तु भीम द्वारा पूंछ टस से मस न हुई| भीम के बहुत प्रयास करने पर भी जब वह पूंछ को हिलाने में नाकामयाब रहा तो सोचने लगा कि यह बलशाली वानर कौन हो सकता है जिसकी मैं पूंछ तक नहीं हिला पा रहा हूँ|

भीम ने वानर से उनका परिचय पूछा तो वानर ने कहा – हे पाण्डुपुत्र! मैं ही हनुमान हूँ| यह सुनकर भीम को अपने द्वारा किये गए व्यवहार पर बहुत पछतावा हुआ| भीम ने हनुमान जी से अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और कहा “हे अंजनिपुत्र महाबलशाली हनुमान, मै आपके दर्शन पाकर धन्य हो गया, आज मेरा जीवन भी सफल हो गया|

भीम की बात सुनकर हनुमान जी मुस्कुराने लगे और भीम को आशीर्वाद देते हुए कहा कि युद्ध के समय तुम्हारे भ्राता अर्जुन के रथ पर उड़ने वाली ध्वजा में मैं सदैव पांडवों के साथ रहूँगा और युद्ध मै तुम्हारी ही विजय होगी| इतना कहकर हनुमान जी अदृश्य हो गए| हनुमान जी के अदृश्य होने पर भीम को फूल नजर आने लगे| फूलों को देखते ही भीम को द्रोपदी की याद आयी और वह तुरंत फूल लेकर आश्रम की और चल दिया|

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *